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What Women Faced In Maternity Leave: भारत में महिलाओं को मैटरनिटी लीव दी जाती है ताकि वे अपना और बच्चे का ध्यान रख सकें। सभी प्रेग्नेंट महिलाएं मैटरनिटी लीव ले सकती हैं। इसके साथ ही अगर कोई महिला 3 महीने से कम की उम्र के बच्चे को गोद लेती है तो उसे 12 हफ्तों तक की छुट्टी मिल सकती है। ऐसे में महिलाओं की सैलरी भी मिलती है। लेकिन बहुत सारे लोगों को इस बात से दिक्कत हो जाती है कि महिलाओं को मैटरनिटी लीव क्यों मिलती है। उन्हें लगता है कि इन छुट्टियों में महिलाएं सिर्फ फन करती हैं लेकिन आज हम मैटरनिटी लीव की रियल्टी के बारे में जानेंगे।
क्या Maternity Leave में सिर्फ मजे होते हैं?
प्रेगनेंसी की जर्नी किसी भी महिला के लिए आसान नहीं होती है। इस समय पर वह बहुत सारे उतार-चढ़ावों से गुजरती है जैसे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बदलावों में से गुज़रना पड़ता है। मैटरनिटी लीव का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि महिला घर पर बैठकर आराम करेगी या फिर अच्छी तस्वीरें क्लिक करनी है । इस बात पर भी लोगों को दिक्कत हो जाती है कि मैटरनिटी लीव पेड क्यों होती है। यह सिर्फ महिलाएं ही जानती हैं कि उनके क्या स्ट्रगल्स हैं।
प्रेगनेंसी के तीन ट्राइमेस्टर
प्रेगनेंसी के तीन ट्राइमेस्टर होते हैं और हर ट्राइमेस्टर में महिलाओं को अलग स्थितियों से गुजरना पड़ता है। फर्स्ट ट्राइमेस्टर में महिलाएं बहुत सारी शारीरिक बदलावों में से गुजरती है क्योंकि बच्चे के ऑर्गन डेवलप होने शुरू हो जाते हैं जैसे मतली, उल्टी, थकावट या ब्रेस्ट टेंडर्नेस आदि ये कुछ आम लक्षण हैं। सेकंड ट्राइमेस्टर में बच्चे की मूविंग महसूस होने शुरू हो जाती है। इसके साथ ही निप्पल में भी बदलाव आने लग जाते हैं। थर्ड ट्रिमेस्टर में आपके पैरों में सूजन महसूस होती है। आपको बार-बार पेशाब आ सकता है और बेबी किक भी महसूस हो सकती है।
भावनाओं को मैनेज करना बड़ा चैलेंज
महिलाओं को भावनात्मक रूप से भी बहुत सारे उतार-चढ़ाव आते हैं जैसे कभी बहुत ज्यादा गुस्सा आ जाना।कई बार इस बात को सोच कर बहुत ज्यादा खुश होती है कि अब नई जर्नी शुरू होने वाले है। प्रेगनेंसी के दौरान अगर कोई कॉम्प्लिकेशन आ जाती है या फिर किसी से समस्या से गुजरना पड़ता है तो उसके कारण मन में उदासी भी आ जाती है। इस तरह महिलाओं के मूड स्विंग्स होते रहते हैं जिसके कारण मूड कभी एकदम शांत हो जाता है या फिर एकदम से भड़क जाता है।
पोस्टमार्टम डिप्रेशन
बच्चा डिलीवरी होने के बाद भी महिलाएं पोस्टमार्टम डिप्रेशन से गुजरती हैं। इस कारण हार्मोनल बैलेंस का भी सामना करना पड़ता है। प्रेगनेंसी की जर्नी किसी भी महिला के लिए आसान नहीं होती है। हर महिला की जर्नी होती है और उनके स्ट्रगल्स अलग-अलग होते हैं। ऐसे में मैटरनिटी लीव महिलाओं के लिए एक राहत का काम करती है कि वे करियर बिना छोड़े बिना भी माँ बन सकती हैं।
रिश्तों में बदलाव
महिलाओं के रिलेशनशिप में भी बहुत सारे बदलाव हो जाते हैं। पत्नी, बेटी और बहू के साथ-साथ मां भी बन जाती हैं। इन सभी चीजों के साथ डील करना किसी भी महिला के लिए आसान नहीं होता है। यह सब चीज देखने में बहुत आसान लगती है लेकिन जिस महिला को इन सब चीजों से गुजरना पड़ रहा है, उसके लिए बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता है। ऐसे समय में बहुत बार महिलाओं को नींद नहीं आती। अगर उन्हें नींद आती भी है तो कई बार बच्चा जाग जाता है जिस कारण उसकी देखभाल करनी पड़ती है। किसी भी तरीके से मैटरनिटी लीव महिलाओं के लिए फालतू नहीं है। यह महिलाओं के लिए इस कठिन समय में एक राहत का काम करती है।