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Unfair Burden: क्यों बेटियों से ज्यादा समाजिक अपेक्षाएं रखी जाती हैं?

बचपन से ही लड़कियों को ट्रेनिंग दी जाती है कि समाज में उन्हें कैसे पेश आना है और कैसे सभी की इज्जत का ध्यान रखना है। वहीं पर लड़कों को बहुत ही खुले माहौल में बड़ा किया जाता है जहां पर सभी लोग उनकी केयर करते हैं।

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Rajveer Kaur
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Daughters

Image Credit: Pinterest

Why Daughters Face Higher Societal Expectations: जब बात घर की बेटियों की आती है तो उनके ऊपर खूब दबाव बनाया जाता है। उनकी परवरिश हमेशा ही लड़कों से अलग होती है। उनके ऊपर बहुत ज्यादा अपेक्षाएं होती हैं और 'घर की इज्जत' का बोझ भी उनके ऊपर ही होता है। बचपन से ही लड़कियों को ट्रेनिंग दी जाती है कि समाज में उन्हें कैसे पेश आना है और कैसे सभी की इज्जत का ध्यान रखना है। वहीं पर लड़कों को बहुत ही खुले माहौल में बड़ा किया जाता है जहां पर सभी लोग उनकी केयर करते हैं। इसके साथ ही उनके शब्दों को भी तवज्जो दी जाती है। ऐसे में जब घर में बेटा और बेटी की परवरिश में फर्क होता है तो उनके व्यवहार में भी यह फर्क दिखाई देने लग जाता है। चलिए आज हमें इस विषय के बारे में बात करते हैं।

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क्यों बेटियों से ज्यादा समाजिक अपेक्षाएं रखी जाती हैं?

बेटा और बेटी में फर्क 

बेटा और बेटी की परवरिश में हमेशा ही फर्क किया जाता है। हम यह बात सिर्फ मुंह से बोलते हैं कि बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं होता है लेकिन ज्यादातर घरों में बेटियों से अपेक्षाएं ज्यादा रखी जाती हैं। बेटियों के नंबर काम नहीं आने चाहिए, उन्हें खाना बनाना आना चाहिए और दूसरों का ध्यान रखना भी उनकी ही जिम्मेदारी होती है। इसके साथ ही अगर कोई उन्हें गलत बोलता है या फिर उनकी इज्जत नहीं करता है तब भी उन्हें पलट कर जवाब नहीं देना है। बेटियों को पढ़ाई-लिखाई की इजाजत होती है लेकिन जॉब करने की उन्हें जरूरत नहीं क्योंकि एक उम्र के बाद उनकी शादी हो जाती है। उन्हें हर बात के लिए दूसरों से पूछना पड़ता है। यह कहकर उन्हें घर में बाहर नहीं निकलने दिया जाता कि बाहर माहौल सुरक्षित नहीं है लेकिन उन बेटों को घर पर नहीं बिठाया जाता जिनकी वजह से बेटियां सुरक्षित महसूस नहीं करती।

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लड़कों पर जोर देने की जरुरत 

ऐसी सोच के कारण बेटियां अपने करियर पर ध्यान नहीं दे पाती या तो उनकी शादी कर दी जाती हैं। ऐसा समझा जाता है कि लड़की के करियर से कोई फायदा नहीं होता है। घर का बेटा चाहे किसी काम का ना हो लेकिन फिर भी उसे कोई कंट्रोल नहीं करता है या फिर उसकी गलती को सुधारने पर कोई जोर नहीं दिया जाता । वहीं दूसरी तरफ लड़की अगर अपने लिए फैसला लेने लग जाए या फिर अपनी ग्रोथ के लिए कोई कदम लें तो समाज में बातें बनने लग जाती हैं। अगर हम इस माहौल को बदलना चाहते हैं तो हमें लड़कों को भी समझाना होगा और उनके ऊपर भी बोझ डालना होगा। लड़कियों को घर से बैठने से समाज में बदलाव नहीं आएगा बल्कि लड़कों की परवरिश करने से ही समाज बदल सकता है।

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