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Why feel shy about teenage changes? Understanding body growth and social silence: किशोरावस्था वह दौर होता है जब बच्चा शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से बदलावों के साथ युवा बनने की ओर अग्रसर होता है। इस समय लड़कों की आवाज़ भारी होने लगती है, चेहरे पर बाल उगने लगते हैं, जबकि लड़कियों में स्तनों का विकास होता है और पीरियड्स की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। ये सब स्वाभाविक बदलाव हैं, फिर भी हमारे समाज में इसे लेकर शर्म और चुप्पी बनी रहती है।
Puberty Shame: किशोरावस्था के बदलावों से शर्म क्यों? जानें शारीरिक विकास और सामाजिक चुप्पी
शिक्षा की कमी और पुराने विचार
स्कूलों में विज्ञान की किताबों में शरीर के बदलावों की जानकारी तो दी जाती है, लेकिन इस पर खुलकर बात नहीं होती। शिक्षक हिचकते हैं और माता-पिता चुप रहते हैं। इससे किशोर बच्चे जब बदलाव महसूस करते हैं, तो डर जाते हैं, उलझन में पड़ जाते हैं और खुद को दोषी मानने लगते हैं। यह शर्म और जानकारी की कमी उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बना सकती है।
लड़कियां और सामाजिक दबाव
लड़कियों के लिए शर्म और चुप्पी और भी ज़्यादा होती है। पीरियड्स शुरू होते ही उन्हें चुप रहने को कहा जाता है, और पैड भी छुपाकर दिए जाते हैं। स्तनों के विकास पर उन्हें “ध्यान से बैठो” या “कपड़े ठीक से पहनो” जैसी बातें सुननी पड़ती हैं। इससे उन्हें लगने लगता है कि उनके शरीर में हो रहे बदलाव कुछ गलत या शर्मनाक हैं।
लड़कों की मुश्किलें अलग और अनकही
लड़कों के शरीर में भी बदलाव होते हैं, जैसे रात में वीर्य स्खलन, चेहरे पर बाल आना और यौन उत्तेजना। लेकिन इन बातों पर कोई चर्चा नहीं होती। उनसे उम्मीद की जाती है कि वे सब कुछ खुद समझें। इससे उनमें भ्रम, डर और शर्म पैदा होती है, और कई बार वे ग़लत या अश्लील जानकारी की ओर बढ़ जाते हैं।
असंतोष और असहजता
जब परिवार, स्कूल और समाज किशोरावस्था पर खुलकर बात नहीं करते, तो बच्चे जवाब ढूंढने के लिए इंटरनेट या दोस्तों की अधूरी जानकारी पर निर्भर हो जाते हैं। इससे उनका भ्रम और डर बढ़ जाता है। यही चुप्पी आगे चलकर आत्मविश्वास की कमी, शरीर को लेकर असंतोष और रिश्तों में असहजता का कारण बन सकती है।
बदलाव की शुरुआत घर से
किशोर अवस्था को लेकर शर्म नहीं, बल्कि समझ और सहानुभूति जरूरी है। माता-पिता और शिक्षक बच्चों से खुलकर बात करें, उन्हें पहले से बदलावों की जानकारी दें और यह एहसास कराएं कि ये सब सामान्य और सुंदर है। ऐसा संवाद ही बच्चों को आत्मविश्वासी और मानसिक रूप से मजबूत बनाता है।