Why Women Should Not Take Burden Of Generational Trauma: अगर आप अपने घर पर अपनी मां या दादी को देखते होंगे तो जरूर इस बात को महसूस करते होंगे कि उन्होंने अपनी जिंदगी को कितना घुट-घुट कर जीया है। उन्होंने कभी अपने मनपसंद कपड़े पहन कर नहीं देखे, कभी मनपसंद खाना नहीं खाया, कभी घूमने नहीं गए और कम उम्र में शादी कर दी गई। उसके बाद बच्चे हो गए। उनके पति ने जैसा कहा, उन्होंने अपने जीवन को वैसे ही व्यतीत किया। उन्होंने अपनी ख्वाहिशों को कभी व्यक्त करने की कोशिश नहीं क्योंकि उन्हें लगता था कि जो हमारे मां-बाप ने हमें सिखाया है, हमें उसके अनुसार ही अपने जीवन को ढालना है। उन्हें कभी उड़ने का मौका ही नहीं दिया गया।
क्यों महिलाओं को Generational Trauma का बर्डन लेने की जरूरत नहीं?
आज के समय में भी वह जेनरेशनल ट्रॉमा महिलाओं में दिखाई देता है। हम औरतों को बहुत समय लग रहा है कि हम अपनी उड़ान भरें लेकिन हमारे अंदर बहुत सारे डर हैं। हमें कोई भी कपड़ा लेने से पहले सोचना पड़ता है। हम बहुत ही बाधित रहती हैं। आज जब हम बड़े हो रहे हैं तब हम समझ पा रहे हैं कि हमारी महिलाएं ऐसी क्यों हैं क्योंकि हमारी मां ने, हमारी नानी से जो सीखा है उनके पास बहुत कम मौके थे और नानी की मां के पास तो उससे भी कम होंगे। जिस महिला की कुछ करने की उम्र में शादी कर दी जाए, उसके दो बच्चे हो जाए तो क्या वह खुद के लिए स्टैंड ले पाएंगी? आज अगर समय बदल भी गया है तो इन समस्याओं का रूप बदला है लेकिन ये खत्म नहीं हुई हैं। अगर आज की महिला पढ़ी-लिखी है, अपनी मर्जी से शादी भी कर रही है, उसके अभी बच्चे भी नहीं है लेकिन घर का काम अभी भी उनकी जिम्मेदारी है। ऑफिस से घर जाकर वो ही किचन में जाती है। पुरुष मजे से अपने कमरे में आराम करते हैं।
आज भी महिलाओं को बताया जाता है कि तुम्हें किस तरीके के कपड़े पहनना चाहिए, किस तरीके से बात करनी चाहिए, कपड़ों की लंबाई कितनी होनी चाहिए, किस तरीके से तुम्हें बोलना चाहिए, तुम्हारी आवाज ज्यादा ऊंची नहीं होनी चाहिए, तुम्हें अपने पति की रिस्पेक्ट करनी चाहिए और उनसे परमिशन लेकर हर काम करना चाहिए।
अब हमें आने वाली जेनरेशन के लिए ऐसा माहौल पैदा करना होगा महिला को किसी चीज से डर नहीं लगता है। आने वाले समय में हमारी महिलाएं आजाद होनी चाहिए उन्हें यह पूछना ना पड़े कि मैं यह कर सकती हूं? या मैं यह पहन सकती हूं? इसके लिए सबसे पहले हमें खुद को बदलना होगा। हमें अपने आप को पितृस्तात्मक समाज से बाहर निकलाना होगा।
हमें उन अनकंफरटेबल बातों को छेड़ना होगा, जिनके बारे में बात करने से हम कतराते हैं। अगर हम उन चीजों के बारे में बात नहीं करेंगे जो आज भी हमारे समाज में टैबू टॉपिक हैं तो हम कभी भी उन्हें ठीक नहीं कर पाएंगे। जैसे हमारी मां ने अपनी जिंदगी बहुत कम संसाधनों में व्यतीत की हैं तो हमें भी वैसे ही अपनी जिंदगी को व्यतीत करना पड़ेगा। अगर आप चाहते हैं कि आपकी बेटी को जन्म से पहले ही न मार दिया जाए, उसके साथ भी सिर्फ इसलिए भेदभाव ना हो क्योंकि वह लड़की है तो हमें आज ही बोलना शुरू करना होगा।