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Hadd Hai Yaar: दूसरों की देखभाल, महिला करे तो जिम्मेदारी लेकिन पुरुष करे तो अहसान और प्रशंसा

हमारे समाज में जब महिलाओं की बात आती है तो हमेशा उनसे ही अपेक्षा की जाती है। इसके साथ ही महिलाओं को यह भी कहा जाता है कि बदले में वो किसी भी चीज की उम्मीद मत रखें क्योंकि यह उनका फर्ज है।

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Rajveer Kaur
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Hadd Hai Yaar: हमारे समाज में जब महिलाओं की बात आती है तो हमेशा उनसे ही अपेक्षा की जाती है। घर में बच्चे हों या फिर बड़े, लेकिन सबसे पहला इशारा महिलाओं के उपर होता है कि वे उनकी देखभाल करें। इसके साथ ही महिलाओं को यह भी कहा जाता है कि बदले में वो किसी भी चीज की उम्मीद मत रखें क्योंकि यह उनका फर्ज है। लगभग हर भारतीय महिला को दूसरों को बोझ उठाना पड़ता है जिस कारण वो खुद के लिए समय ही निकाल नहीं पाती। इसके उल्ट समाज की यह सोच होती है कि पुरुषों की जिम्मेदारी सिर्फ कमाई करना है। ऐसे में अगर पुरुष अपने घर में काम करते हैं या दूसरों की देखभाल करते हैं तो उन्हें बहुत प्रशंसा मिलती है और वह महिलाओं के ऊपर आसान भी जताते हैं। चलिए आज समाज के इस दोगलेपन के ऊपर बात करते हैं-

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दूसरों की देखभाल, महिला करे तो जिम्मेदारी लेकिन पुरुष करे तो अहसान और प्रशंसा

बिना पैसे की देखभाल

अगर आप अपनी मदर या फिर दादी की तरफ देखेंगे हैं तो उन्होंने अपनी जिंदगी हमेशा दूसरों के लिए निकाल दी। उन्होंने कभी सेल्फ-केयर पर ध्यान नहीं दिया। उन्हें बचपन से यही सिखाया गया कि एक औरत का ही फर्ज होता है कि सभी की देखभाल करें जिसके कारण उन्होंने कभी नहीं सोचा कि उन्हें भी थकावट महसूस होती है। उन्होंने हमेशा ही दूसरों की देखभाल में अपनी जिंदगी काट दी और आज जब हम उनसे पूछते हैं कि उन्होंने अपनी लाइफ में खुद के लिए क्या किया तो उनका यह कहना होता है कि अगर दूसरे अपनी जिंदगी में स्वस्थ और खुश हैं तो हमें और कुछ नहीं चाहिए।

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यह व्यव्हार दिखता है कि महिलाएं कितनी निस्वार्थ हैं कि दूसरों के लिए इतना कुछ कर जाती हैं लेकिन फिर भी उनसे अपेक्षा नहीं रखती कि वह उनके लिए कुछ करें। वहीं अगर पुरुष किसी एक दिन चाय का कप भी बना दे तो सभी उन्हें समाज ते हैं कि यह कितना अच्छा पुरुष है। कई पुरुष ऐसे भी होते हैं जो एक छोटे से काम को लिए भी अहसान दिखाते हैं। ऐसे पुरुषों को समाज में अच्छे पति, पुत्र या फिर भाई का टैग दिया जाता है।

वहीं पर एक वर्किंग महिला जिसके बच्चे भी हैं, घर का सारा काम भी करना है उसे सिर्फ यह कहा जाता है कि यह तुम्हारी ड्यूटी है और तुम कुछ दुनिया में अलग नहीं कर रही हो। एक महिला हार्मोनल बदलावों से भी गुजरती हैं, उसे पीरियड क्रैंप्स भी होते हैं, कुछ महिलाएं अपने मेनोपॉज पड़ाव से भी गुजर रही होती हैं लेकिन फिर भी उनसे ही सभी कामों की अपेक्षा की जाती है। 

ऐसे बिहेवियर के कारण महिलाएं बर्नआउट को झेलती हैं और रेस्ट नहीं करती। इसलिए उन्हें मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याएं भी होती हैं क्योंकि उनका माइंड और बॉडी रिलैक्स ही नहीं कर पाते। हर समय महिलाएं किसी न किसी टास्क के बारे में ही सोच रही होती हैं। घर के हर छोटे काम से बड़े काम तक की जिम्मेदारी उनके ऊपर होती है। इसलिए हमें ऐसे व्यवहार को बदलने की जरूरत है। हमें पुरुषों के काम और देखभाल करने को नॉर्मलाइज करना चाहिए कि यह कुछ भी अलग नहीं है और हर किसी को  अपने काम करने चाहिएं।

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