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Photograph: (Pinterest)
शादी की रस्मों के दौरान जब दो लोग एक रिश्ता निभाने का वादा करते हैं, तो उसकी नींव दोनों की समझ, भरोसे और बराबरी पर ही टिकी होती है। लेकिन जब वही रिश्ता किसी वजह से टूट जाता है, तो समाज की उंगलियाँ ज़्यादातर सिर्फ महिलाओं की ओर ही उठाई जाती हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब रिश्ता दो लोगों का होता है, तो उसकी नाकामी की ज़िम्मेदारी सिर्फ एक औरत पर ही क्यों डाल दी जाती है? आइए जानते हैं
Relationship: जब रिश्ता दो लोगों से है, तो रिश्ता टूटने का इल्ज़ाम सिर्फ महिला पर ही क्यों?
समाज की सोच: “औरत ने निभाया नहीं”
पितृसत्तात्मक समाज में सालों से यही धारणा चली आ रही है कि हर रिलेशनशिप को बचाए रखना केवल महिलाओं की ज़िम्मेदारी है, और महिलाएं ख़ुद भी इसी बोझ के साथ जीती आ रही हैं। दुर्भाग्य की बात ये है कि हमारा समाज आज भी इस सोच से बाहर नहीं निकल पाया है। अगर शादी या रिश्ता टूट जाए, तो सबसे पहले यही कहा जाता है कि “उसने समझदारी नहीं दिखाई”, “थोड़ा झुक जाती तो बात संभल जाती।”
लेकिन कोई ये नहीं पूछता कि हमेशा झुकना उसी का फ़र्ज़ क्यों है? एक रिश्ते को बचाने की कोशिश दोनों तरफ़ से होनी चाहिए, लेकिन समाज ने ये बोझ हमेशा महिला के कंधों पर डाल दिया।
इमोशनल और सोशल प्रेशर
अक्सर महिलाएं अपने मेंटल और इमोशनल पेन को सिर्फ इस डर से छुपाकर रखती हैं कि लोग क्या कहेंगे। कई बार तो वो टूटे हुए रिश्ते में भी बनी रहती हैं क्योंकि उन्हें “घर तोड़ने वाली औरत” का टैग नहीं चाहिए होता। समाज में अब भी ऐसी महिलाओं की कमी नहीं है जो abusive या toxic रिश्तों में इसलिए फँसी हैं क्योंकि उन्हें यह सिखाया गया है कि “औरत ही घर को जोड़कर रखती है।”
पुरुष की गलती पर भी इल्ज़ाम महिला पर ही क्यों?
कई बार रिश्ते की असफलता की असली वजह किसी पुरुष का व्यवहार, बेवफाई या लापरवाही होती है, फिर भी दोष औरत को मिलता है। ऐसी सिचुएशन में जब वो महिला सवाल करती है, तो उसे “ज़्यादा बोलने वाली”, “स्वतंत्र” या “अडजस्ट ना करने वाली” कहकर उसकी छवि खराब कर दी जाती है।
ये मानसिकता न सिर्फ़ महिलाओं को मेनिपुलेट करती है, बल्कि उनके Self-cselfonfidence को भी तोड़ती है। इसके चलते वो खुद को अपने हित के लिए फैसले लेने से भी रोकती हैं।
रिश्ता दो लोगों के बीच है तो ज़िम्मेदारी भी दोनों की है
मेरा मानना है कि किसी भी रिलेशनशिप की सफलता या असफलता का ठप्पा कभी एक व्यक्ति पर नहीं लगाया जाना चाहिए। अगर रिश्ता दो लोगों के बीच बना है, तो उसके टूटने के लिए भी दोनों ही जिम्मेदार होते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि औरत को जेंडर के आधार पर नहीं, बल्कि एक सामान्य इंसान के तौर पर देखा जाए।
उसे हमेशा “निभाने वाली” या “झुकने वाली” के रोल में कैद करने के बजाय पुरुषों को भी अपने रिश्ते को बचाए रखने की सीख दी जानी चाहिए। क्योंकि महिलाएं भी इंसान हैं और पुरुषों की तरह वो भी समान रूप से प्यार, सम्मान और हर जगह बराबरी की हक़दार हैं।