Kids & Feminism: बच्चों को कैसे सिखाया जाए फेमिनिज्म? जानें कुछ टिप्स

अगर हम चाहते हैं कि हमारे समाज में औरत और मर्द को एकसमान दर्जा मिले और महिलाओं को सिर्फ उनके जेंडर के कारण कम मौके मत मिले। इसके साथ ही उन्हें भी पुरुषों के बराबर ही समझा जाए, वो समाज में खुलकर सांस ले सकें-

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Rajveer Kaur
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(Image Credit: Freepik)

Kids & Feminism: अगर हम चाहते हैं कि हमारे समाज में औरत और मर्द को एकसमान दर्जा मिले और महिलाओं को सिर्फ उनके जेंडर के कारण कम मौके ना मिलें। इसके साथ ही उन्हें भी पुरुषों के बराबर ही समझा जाए, वो समाज में खुलकर सांस ले सके और पीरियड्स के बारे में खुलकर बात की जाए, महिलाएं फाइनेंशली इंडिपेंडेंट हों तो हमें अपने बच्चों को फेमिनिज्म सिखाना पड़ेगा। इससे समाज पुरुष प्रधान नहीं ब्लकि जेंडर न्यूट्रल (Gender Neutral) बनेगा। आइये जानते हैं बच्चों को फेमिनिज्म कैसे सिखाया जाए-

बच्चों को कैसे सिखाया जाए फेमिनिज्म? जानें कुछ टिप्स

परवरिश में फर्क मत करें

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अगर आप अपने बच्चों को  फेमिनिज्म के बारे में सिखाना चाहते हैं ताकि वो भी बड़े होकर औरत और मर्द के बीच फर्क मत करें और दोनों जेंडर्स को सामान समझे तो हमें पारंपरिक परवरिश छोड़नी पड़ेगी जैसे कि अगर लड़की घर के काम सीख रही है तो लड़के को भी सीखने पड़ेगा। दूसरी बात आप लड़कियों को भी उतना ही खुल माहौल दे जैसे आप अपने घरों में लड़के को देते हैं। दोनों को एक समान पढ़ने के मौके मिलने चाहिए। अगर लड़का देर रात तक घर से रह सकता है तो आपको लड़की को रोकने का कोई अधिकार नहीं है। 

लड़कों को सिखाने पर जोर दें

हमारे समाज में ज्यादातर शिक्षा लड़कियों को दी जाती है जैसे ऐसे रहना चाहिए, छोटे कपड़े नहीं पहनने, बड़ों के सामने झुककर रहना, अपने पति की सेवा करनी है, रात को ज्यादा देर बाहर रूकना तुम्हारे लिए सेफ नहीं है लेकिन हम कभी लड़की को नहीं समझाते हैं कि तुम्हें लड़कियों की इज्जत करनी चाहिए, उनकी इजाजत (Consent) के बिना उन्हें हाथ नहीं लगाना चाहिए, उनके छोटे कपड़े आपको यह इजाजत नहीं देते कि आप उनके साथ छेड़छाड़ या शारीरिक शोषण करें। उन्हें आपसे इजाजत लेने की जरूरत नहीं है। दोनों को खुलकर जीने का अधिकार है

लड़का और लड़की को साथ में घुलने मिलने दें

आज भी हमारे समाज में लड़का और लड़की को साथ में घुलने मिलने नहीं दिया जाता है वो साथ में खेल नहीं सकते, एक दूसरे के खिलौने इस्तेमाल नहीं कर सकते क्योंकि हमारा मानना यह है कि  लड़की और लड़के के खिलौने अलग होते हैं। उनके कपड़ों में फर्क किया जाता है। इसके साथ ही हमने रंग को भी जेंडर स्पेसिफिक बना दिया है जैसे गुलाबी रंग ल लड़कियों के लिए होता है और नीला रंग लड़कों के लिए होता है। यह स्टीरियोटाइप थिंकिंग लड़का और लड़की में भेदभाव पैदा करती है इससे हम एक पित्रात्मक सोच को जन्म देते हैं इसलिए हमें बच्चों को फेमिनिज्म सिखाना बहुत जरूरी है ताकि ऐसी सोच को खत्म किया जा सके।

कंसेंट के बारे में पता होना जरूरी

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कंसेंट के बारे में भी उन्हें सिखाना बहुत जरूरी है कि आप चाहे किसी लड़की का हाथ पकड़ रहे हैं, उन्हें किस कर रहे हैं या फिर उनके साथ कोई भी सेक्सुअल एक्टिविटी करें तो सबसे पहले आपको कंसेंट लेना चाहिए। इसके साथ ही अगर कोई लड़की मना कर रही है तो इसका मतलब न ही होता है हां नहीं। अगर आपको लड़की किस करने की कंसेंट दे रही है लेकिन आप उनका हाथ पकड़ना चाहते हैं या फिर उन्हें गले मिलना चाहते हैं तो उसके लिए आपको अलग से कंसेंट लेना होगा। एक कंसेंट सभी आपकी एक्टिविटीज पर लागू नहीं होती है।

लड़कों को भी समझना पड़ेगा

हमारे समाज में जैसे लड़के को रोने नहीं दिया जाता है और उनके ऊपर ही घर की जिम्मेदारियां का बोझ डाला जाता है। इसके साथ उन्हें ही सिर्फ कमाई की तरफ लगाया जाता है या उनके ऊपर ही फाइनेंशली बोझ बढ़ जाता है तो इसको भी हमें कम करना चाहिए। लड़कों की मेंटल हेल्थ के ऊपर भी हमें ध्यान देने की जरूरत है। उन्हें परिवार के बोझ को अकेला मत उठने दे बल्कि लड़कियां उनका साथ दें।

अंत में, हमें फेमिनिज्म का असली मतलब समझने की जरूरत है। यह सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं है बल्कि जेंडर इक्वलिटी के बारे में बात करता है। जब हम अपने बच्चों को फेमिनिज्म के बारे में सिखाएंगे तब हम पितृसत्तात्मक सोच को खत्म करके एक ऐसी सोच को जन्म देंगे जहां महिला और पुरुष दोनों बराबर होंगे और दोनों को बराबर मौके मिलेंगे। यहां पर पीरियड्स, मेनोपॉज या प्रेगनेंसी टैबू टॉपिक नहीं होंगे। सेक्सुअल हेल्थ के बारे में खुलकर बात होगी और एलजीबीटी के बारे में लोग सहज होंगे।

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