The Silent Suffering of Children in Judgemental Homes: बहुत सारे घरों का ऐसा माहौल होता है जहां पर बच्चों को लगातार जज किया जाता है। उन्हें हमेशा ही किसी न किसी बात के लिए रोक-टोक की जाती है जिस कारण बच्चों का व्यवहार चिड़चिड़ा होने लग जाता है और वह माता-पिता से बातें छुपाने लग जाते हैं। इसके साथ ही बच्चे भी ऐसा व्यवहार ही सीखते हैं और वह भी जजमेंटल बन जाते हैं जो सबसे बुरी बात है। ऐसे बच्चे खुद को लेबल करने लग जाते हैं और अपनी वर्थ दूसरों के ओपिनियन पर डिसाइड करने लग जाते हैं। उनके लिए खुद की बात, दूसरे की बात से ज्यादा मैटर करती है और उन्हें सेल्फ डाउट रहने लग जाता है। चलिए जानते हैं कि माता-पिता को बच्चों को क्यों जज नहीं करना चाहिए?
बच्चे को किसी न किसी बात पर जज करते रहने से क्या प्रभाव पड़ते हैं?
सेल्फ एस्टीम की कमी
ऐसे बच्चों में सेल्फ एस्टीम की कमी होती है। वह अपने लिए फैसला नहीं ले पाते हैं। उन्हें हमेशा ही खुद के ऊपर संदेह रहता है कि वो सही फैसला नहीं ले सकते हैं। उन्हें हर एक्टिविटी पर लगातार क्रिटिसिजम मिलता है जो उनके कॉन्फिडेंस को तोड़ कर रख देता है। उन्हें लगता है कि वे फेलियर हैं या फिर उन्हें अपने ओपिनियन के लिए दूसरों के वैलिडेशन की जरूरत है। इस कारण वे पर्सनल ग्रोथ पर ध्यान नहीं दे पाते हैं और हमेशा ही दूसरों की बातों में फंसे रह जाते हैं। वह खुद के साथ नेगेटिव बातें करते हैं और उनकी आउटपुट भी नेगेटिव ही निकलती है।
भावनाओं को दबाना
ऐसे बच्चे भावनाओं को दबाने लग जाते हैं क्योंकि जब वह कोई भी बात करते हैं तो उन्हें जज किया जाता है या फिर लोग उन्हें लेबल करने लग जाते हैं। उन्हें सुरक्षित माहौल नहीं मिलता है। उन्हें समझ में नहीं आता है कि वह बात किसके साथ करें। इस कारण वह अपनी भावनाओं को दबाने लग जाते हैं जिस कारण मानसिक समस्याएं रहने लग जाती हैं और डिप्रेशन और स्ट्रेस का शिकार हो जाते हैं। उनके ऊपर एक बोझ रहता है कि अगर हम ऐसा करेंगे तो लोग क्या सोचेंगे। उनका हर काम दूसरों के ऊपर डिपेंड होता है। अगर उन्हें लगता है कि यह काम दूसरों के अनुकूल नहीं है तो नहीं करते हैं और अपनी बहुत सारी इच्छाओं एवं भावनाओं को दबा देते हैं।
टॉक्सिक रिश्ते
ऐसे बच्चे टॉक्सिक रिलेशनशिप का भी शिकार होते हैं और खुद भी टॉक्सिक बन जाते हैं क्योंकि उन्होंने हमेशा ही अपने आसपास ऐसा माहौल देखा होता है जहां पर दूसरे की चॉइस की रिस्पेक्ट नहीं की जाती है। इस कारण वह अपने पार्टनर के साथ बुरा व्यवहार करने लग जाते हैं। ऐसे बच्चों को लगता है कि हम जिंदगी अपने अनुसार नहीं व्यतीत कर सकते हैं। हमें हमेशा ही दूसरों के हिसाब से रहना पड़ेगा। इस कारण वह दूसरों को भी ऐसा करने की सलाह देते हैं जो कि बिल्कुल भी सही नहीं है।
बाउंड्रीज
ऐसे बच्चों के पैरेंट्स उनके साथ बाउंड्रीज मेंटेन नहीं करते हैं। वह हमेशा ही उनकी पर्सनल लाइफ में इंटर करते हैं जिसका कारण उन्हें भी इसकी आदत हो जाती है। वह भी दूसरों के साथ बाउंड्रीज मेंटेन नहीं कर पाते हैं जिस कारण लोग उन्हें अपनी लाइफ में ज्यादा शामिल नहीं करते हैं। इस कारण वो अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं। ऐसे बच्चों को लगता है कि हम दूसरों की लाइफ के फैसले ले सकते हैं या फिर उस पर टिप्पणी कर सकते हैं जो सही नहीं है। हमें किसी के लाइफ के ऊपर अधिकार नहीं है और ना ही आप उनकी चॉइस के ऊपर सवाल उठा सकते हैं।