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Photograph: (Canva)
5 Common Myths About Mental Health and Why They’re Wrong: आज भी मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में कई तरह की गलतफहमियां फैली हुई हैं। जहां शारीरिक बीमारियों को लोग आसानी से स्वीकार कर लेते हैं, वहीं मानसिक समस्याओं को या तो नजरअंदाज कर दिया जाता है या फिर इसे कमजोरी मान लिया जाता है। इस कारण कई लोग मदद लेने से कतराते हैं और चुपचाप तकलीफ सहते रहते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मिथकों को तोड़ा जाए और सच्चाई को समझा जाए।
मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े 5 आम मिथक और उनकी सच्चाई
1. मानसिक बीमारियां सिर्फ कमजोर लोगों को होती हैं
यह सोच पूरी तरह गलत है। मानसिक स्वास्थ्य किसी की ताकत या कमजोरी पर निर्भर नहीं करता। डिप्रेशन, एंग्जायटी और अन्य मानसिक बीमारियां जैविक, सामाजिक और भावनात्मक कारणों से हो सकती हैं। मजबूत व्यक्तित्व वाले लोग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं।
2. मानसिक बीमारियां सिर्फ ध्यान आकर्षित करने का तरीका हैं
बहुत से लोग यह मानते हैं कि जो लोग मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के बारे में बात करते हैं, वे सिर्फ अटेंशन चाहते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि मानसिक बीमारियां वास्तविक होती हैं और अक्सर लोग अपनी तकलीफ छुपाने की कोशिश करते हैं। इसे नाटक समझने की बजाय समझदारी और सहानुभूति से देखना जरूरी है।
3. डिप्रेशन सिर्फ उदासी है, यह खुद ही ठीक हो जाएगा
उदासी और डिप्रेशन में बड़ा अंतर होता है। उदासी एक अस्थायी भावना होती है, लेकिन डिप्रेशन एक मानसिक स्थिति है जो हफ्तों, महीनों या सालों तक रह सकती है। यह सोचने, महसूस करने और जीवन जीने के तरीके को प्रभावित कर सकती है और इसके लिए सही इलाज जरूरी होता है।
4. थेरेपी और काउंसलिंग की जरूरत सिर्फ "पागल" लोगों को होती है
काउंसलिंग और थेरेपी मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती हैं। यह केवल गंभीर मानसिक बीमारियों के लिए नहीं, बल्कि आत्म-सुधार, भावनात्मक स्थिरता और मानसिक शांति के लिए भी फायदेमंद होती है। ठीक वैसे ही जैसे शरीर को फिट रखने के लिए डॉक्टर की सलाह ली जाती है, वैसे ही दिमागी सेहत के लिए थेरेपी लेना भी आम बात होनी चाहिए।
5. मानसिक स्वास्थ्य पर बात करना कमजोरी की निशानी है
इसके विपरीत, मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करना हिम्मत और आत्म-जागरूकता की निशानी है। जब लोग खुलकर अपनी समस्याओं पर चर्चा करते हैं, तो इससे न केवल उन्हें मदद मिलती है बल्कि समाज में भी इस विषय को लेकर जागरूकता बढ़ती है। चुप रहने से समस्या और गंभीर हो सकती है, इसलिए इस पर खुलकर बात करना जरूरी है।