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what is toxic positivity (image source: freepik)
What Is Toxic Positivity: जब कोई इंसान बहुत दुखी, परेशान या बुरे दौर से गुज़र रहा होता है, तो अक्सर हम उसे यह कह देते है कि सब ठीक होजायेगा, तू अच्छा सोच,लेकिन हम यह नहीं समझते की यह बोलना कभी कभी उस इंसान पे इसका उलटा असर कर सकता है।
टॉक्सिक पॉसिटिविटी क्या होता है?
हमें उस इंसान को यह महसूस करने की ज़रूरत समझ ही नहीं आती की दुःख को स्वीकार करना बहुत ज़रूरी होता है उससे आगे बढ़ने के लिए। इस लगातार खुश रहने के ऐटिट्युड का एक बुरा तरफ भी है जिसे टॉक्सिक पॉसिटिविटी कहते हैं। आइये पढ़े कि यह क्या होता है, इससे हमारे ऊपर क्या असर पड़ता है।
टॉक्सिक पॉसिटिविटी को हम अपने रोज़ाना जीवन में इतना इस्तेमाल कर चुके हैं कि अब हमें यह सामान्य लगने लगा है और ना ही हमें इसमें कोई बुराई दिखती है। लेकिन ऐसा क्यों होता है? वो इसलिए क्यूंकि हमें इस बारे में कोई नहीं सिखाता। बचपन से जो देखते आते है, वही तौर-तरीके अपना लेते है बिना पूछे की इससे क्या असर होता है।
टॉक्सिक पॉसिटिविटी हमारे मेन्टल हेल्थ पर बहुत बुरा असर करता है। इससे हम अपने अंदर का दुःख ठीक से स्वीकार नहीं कर पाते। इस प्रेशर से हम हमारे दर्द को खुदपर हावी भी होने दे देते है, क्यूंकि हम समय रहते उससे डील नहीं कर पाते। यह खुश और पॉजिटिव होने का प्रेशर किसी परेशान इंसान पर डालना, उसे अपने स्थिति पर गिलटी महसूस करा देता है क्यूंकि हम उनसे कहते है की कुछ भी हो जाये लेकिन हस्ते रहो, खुश रहो।
"चाहे जो भी परिस्तिथि हो लेकिन मुस्कुराते रहने से सब ठीक हो जायेगा।" बचपन से कितनी ही बार दुखी होने पर हमने यह सुना है, माँ-बाप से, भाई बहनो से, दोस्तों से, टीचर्स से और ना जाने कितने ही लोगो से। लेकिन किसी ने परिस्तिथि को स्वीकार कर उससे लड़ना सीखो, यह बोला ही नहीं।
आशावादी होने में और टॉक्सिक पॉजिटिव होने में एक बहुत ही पतली लकीर होती है जिससे सचाई कहते है। जब हम सच को स्वीकार कर आगे बढ़ पाते है, उसे आशा रखना कहते है लेकिन अगर हम सचाई को स्वीकार ही नहीं करते और बस ज़बरदस्ती खुश होकर आगे बढ़ने की कोशिश करते रहते है, उसे टॉक्सिक पॉसिटिविटी कहते हैं।