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भारतीय समाज में Toxic Masculinity को क्यों सेलिब्रेट किया जाता है

असलियत यह है कि मर्द को भी दर्द होता है। इस बात में कोई शक या झूठ नहीं है। मर्द के अंदर भी इमोशंस होते हैं। यह अलग बात है कि उसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की आजादी नहीं। हम लोगों ने मर्दों को इतना कठोर बना दिया है-

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Rajveer Kaur
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Toxic Masculanity (freepik)

(Image Credit: Pinterest)

Why Indian Society Celebrates Toxic Masculinity: शुरू से ही हमारे समाज में टॉक्सिक मर्दानगी को सेलिब्रेट किया जाता है। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि इसे ही सही रूप से मर्दानगी समझा जाता है। समाज के अनुसार एक मर्द वही होता है जो मारना पीटना जानता हो, जिसे दर्द ना होता हो जो अपने इमोशंस को कंट्रोल कर सके, औरत की इज्जत ना करें और खुद को बड़ा दिखाएं। क्या सही मायने में मर्दानगी का मतलब यही होता है? चलिए जानते हैं-

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भारतीय समाज में Toxic Masculinity को क्यों सेलिब्रेट किया जाता है

मर्द को भी दर्द नहीं होता 

असलियत यह है कि मर्द को भी दर्द होता है। इस बात में कोई शक या झूठ नहीं है। मर्द के अंदर भी इमोशंस होते हैं। यह अलग बात है कि उसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की आजादी नहीं। हम लोगों ने मर्दों को इतना कठोर बना दिया है कि वे चाहते हुए भी अपने अंदर के भाव व्यक्त नहीं कर सकते। अगर मर्द को रोने के लिए महिला का कंधा चाहिए तो वह कह नहीं सकता क्योंकि समाज उस मर्द को कमजोर समझेगा या फिर उसकी मर्दानगी पर सवाल उठाएगा। वहीं दूसरी तरफ मर्द अपने इमोशन्स को अंदर दबा कर मारपीट करें और अपनी वाइफ साथ बुरा व्यवहार करें तो उसे सही माना जाता है। 

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सिनेमा का बहुत बड़ा रोल

इन सब चीजों में सिनेमा का बहुत बड़ा रोल है क्योंकि आज भी 'एनिमल' जैसी फ़िल्में टॉक्सिक मर्दानगी को बढ़ावा दे रही है। लोगों को Misogyny भर-भर के सिनेमा के जरिए प्रस्तुत की जा रही है। आज भी मूवीस में औरतों का रोल कुछ हद तक सीमित होता है। जहां पर उन्हें सिर्फ ढाल की तरह दिखाया जाता है जो सिर्फ लोगों का एंटरटेनमेंट करने के लिए होती है लेकिन उसके रोल का कोई मकसद नहीं होता। इससे महिला का रोल इतना उभर के नहीं आता। उन्हें सिर्फ मेल एक्टर को सपोर्ट करने के लिए मूवीस में दिखाया जाता है।

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इसके प्रभाव

अगर हम सब ने इनका साथ देना बंद ना किया तो जो टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी के प्रभाव दिखाई दे रहे हैं वह और आगे भी दिखाई देंगे। पहली बात तो इससे गन कल्चर बहुत प्रमोट हो रहा है। महिलाओं के ऊपर एसिड अटैक हो रहे हैं, रेप कल्चर बढ़ रहा है, कंसेंट को लोग इतनी महत्वता नहीं दे रहे, सेक्सुअल हैरेसमेंट और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ यह सब भी आज आम हैं। जिसका बड़ा कारण टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी ही है। जितना हम मर्दों की मारपीट को सामान्य मानते हैं उतना ही फिर डोमेस्टिक वायलेंस के रूप में महिलाओं को यह चीज सहनी पड़ती है।

कब तक ऐसे व्यवहार को सामान्य माना जाएगा

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हमारे समाज में कब तक ऐसे व्यवहार को सामान्य माना जाएगा जबकि यह व्यवहार बहुत टॉक्सिक है और इसके नतीजा पहले से ही हमारे सामने हैं। आज के समय में हमें ऐसी मर्दानगी को खत्म करने की जरूरत है लेकिन हम उल्टा कर रहे हैं। हमें यंग जेनरेशन को यह सिखाने की जरूरत है कि असली मर्द वही होता है जो जिसे दर्द भी होता है, जो अपनी भावनाओं को व्यक्त भी कर सकता है, उसे भी वुलनरेबल होने की आजादी है। रोना मर्दों के लिए बुरी बात नहीं है। हर चीज का सॉल्यूशन मार पिटाई नहीं है। अगर तुम औरत की इज्जत करोगे तो तुम उसके नीचे नहीं दबोगे। फेमिनिज्म सिर्फ औरतों के लिए नहीं है अगर कोई मर्द फेमिनिज्म को सपोर्ट करता है तो वह असमानता को सपोर्ट कर रहा है। यह सब बातें हमें सीखने की जरूरत है, तभी बदलाव संभव होगा।

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