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Photograph: (freepik)
Which Tests Are Necessary To Be Done During Pregnancy?: प्रेग्नेंसी हर महिला के जीवन का सबसे खूबसूरत और बेहद खास समय होता है। यह समय हर महिला अपने जीवन में चाहती है। यह बेहद नाजुक समय होता है इस दौरान माँ और गर्भ में पल रहें बच्चे दोनों की सेहत का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी होता है। इस समय उन दोनों की देखभाल के साथ ही समय-समय पर जरूरी मेडिकल टेस्ट करवाना भी आवश्यक होता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर कुछ ज़रूरी टेस्ट्स करवाने की सलाह देते हैं, जो माँ और गर्भ में पल रहें भ्रूण की परिस्थिति को मॉनिटर करने में मदद कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि गर्भावस्था के दौरान कौन-कौन से मेडिकल टेस्ट करवाना बेहद ज़रूरी होता है।
गर्भावस्था में कौन-कौन से टेस्ट करवाना जरूरी होता है?
पहली तिमाही (1 से 12 हफ्ते तक)
1. ब्लड ग्रुप और Rh फैक्टर
यह पता करने के लिए कि माँ का ब्लड ग्रुप और Rh फैक्टर (Positive या Negative) में से क्या है।
अगर मां Rh Negative है और बच्चा Rh Positive, तो मां के शरीर में एंटीबॉडी बनने का खतरा बढ़ जाता है जो अगली प्रेग्नेंसी को प्रभावित कर सकता है।
2. हीमोग्लोबिन (Hb)
यह एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी की जांच करता है, जो प्रेग्नेंसी में आम समस्या होती है और माँ-बच्चे दोनों को ही प्रभावित कर सकती है।
3. HIV, हेपेटाइटिस B और सिफिलिस
इन संक्रमणों की जांच होती है ताकि समय रहते इलाज हो सके और शिशु को इन गंभीर संक्रमणों से बचाया जा सके।
4. थायरॉइड (TSH टेस्ट)
थायरॉइड हार्मोन की गड़बड़ी से बच्चे के दिमागी विकास पर इसका असर हो सकता है।
5. ब्लड शुगर टेस्ट (FBS/RBS)
इसकी जांच इसलिए होती है क्योंकि अकसर प्रेग्नेंसी के समय डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।
6. यूरिन रूटीन टेस्ट
इस टेस्ट से यूरीन इन्फेक्शन या किडनी से जुड़ी समस्याओं का पता आसानी से चलता है।
7. डेटिंग स्कैन (6-9 सप्ताह)
यह अल्ट्रासाउंड भ्रूण की उम्र, उसकी स्थिति और हार्टबीट का पता करने में मदद करता है।
8. डबल मार्कर टेस्ट (11-14 सप्ताह)
गर्भावस्था की पहली तिमाही में किया जाने वाला एक स्क्रीनिंग टेस्ट है जो गर्भ में पल रहें भ्रूण से संबंधी असामान्यताओं, जैसे डाउन सिंड्रोम और एडवर्ड्स सिंड्रोम, के जोखिम का आसानी से पता लगाता है
दूसरी तिमाही (13 से 26 हफ्ते तक)
1. NT Scan 11-14 सप्ताह
भ्रूण की गर्दन के पीछे की मोटाई मापी जाती है यदि अधिक हो, तो यह क्रोमोसोमल प्रॉब्लम का संकेत हो सकता है।
2. क्वाड्रपल टेस्ट (15-20 सप्ताह)
यह बच्चे के मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में कमी की जांच करता है।
यह भी जेनेटिक समस्याओं के रिस्क को पता लगाता है।
3. Anomaly Scan (लेवल 2 अल्ट्रासाउंड – 18-22 सप्ताह)
यह एक डिटेल्ड स्कैन होता है जिसमें शिशु के सारे अंग दिल, मस्तिष्क, हाथ-पैर आदि ठीक से बन रहे हैं या नहीं, इसकी जांच होती है।
4. ग्लूकोस टॉलरेंस टेस्ट (24-28 सप्ताह)
यह टेस्ट यह देखता है कि माँ का शरीर ग्लूकोज़ को कैसे प्रोसेस करता है और इससे गर्भकालीन मधुमेह यानी Gestational Diabetes का पता चलता है।
तीसरी तिमाही (27 से 40 हफ्ते तक)
1. ग्रोथ स्कैन (32-34 सप्ताह)
शिशु की वृद्धि ठीक से हो रही है या नहीं, एमनियोटिक फ्लूइड की मात्रा, और शिशु की पोजीशन की जांच की जाती है।
2. डोप्पलर अल्ट्रासाउंड (अगर जरूरत हो)
नाल यानी प्लेसेंटा की स्थिति और बच्चे की नसों में खून का प्रवाह ठीक प्रकार से हो रहा है या नहीं इस जांच से पता लगाया जाता है।
3. रिपीट ब्लड टेस्ट्स (CBC, थाइरोइड, शुगर)
इस टेस्ट यह सुनिश्चित किया जाता है कि माँ में खून की कमी, थायरॉइड या शुगर की समस्या नहीं बढ़ रही है।
4. ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस (GBS) Test (35-37 सप्ताह)
यह टेस्ट यह देखता है कि मां के शरीर में एक खास बैक्टीरिया है या नहीं, जिससे बच्चे को जन्म के समय इंफेक्शन होने से बचाया जा सकता है।