Why We Need To Normalise Breastfeeding In Public: ब्रेस्टफीडिंग बच्चे के पालन-पोषण में एक अहम प्रकिया है। बच्चे के लिए माँ का दूध अमृत के समान होता है। इसलिए हमेश पहले 6 महीने तक बच्चों को मां का दूध पिलाने का ही सुझाव दिया जाता है। अब माँ के दूध की जरूरत बच्चों को कभी भी पढ़ सकती है। बच्चे को जब भूख लगती है तब माँ को उसे दूध पिलाना ही पड़ता है चाहे वो घर के अंदर हो या बाहर। अब कुछ लोग पब्लिक प्लेस पर महिलाओं के ब्रेस्टफीड करवाने को सेक्सुअल मानते हैं जो पितृसत्तात्मक और रूढ़िवादी सोच का नतीजा है।
पब्लिक में Breastfeeding शर्मनाक नहीं बल्कि जरूरत है
पब्लिक प्लेस पर अक्सर ही महिलाओं को शिशु के साथ ब्रेस्टफीड करवाते हुए देखा जा सकता है। अब कई लोग ऐसे होते हैं जो महिलाओं को असहज महसूस कराते हैं। इसके कारण महिलाओं को अपने बच्चों को दूध पिलाने में तकलीफ होती है। उसके साथ ही उन्हें गलत नजरिया से भी देखा जाता है. उनके लिए चरित्र पर भी सवाल उठाए जाते हैं। अब यह बात लोगों को समझने की जरूरत है कि ब्रेस्टफीड करवाने में महिला को किसी तरीके की शर्म नहीं होनी चाहिए। यह एक जरूरी चीज है जिसे आपको बिल्कुल भी अवॉइड नहीं कर सकते हैं। जब भी बच्चे को भूख लगी है तो वहां पर मां उसे रोता हुआ नहीं देख सकती है। उसके लिए यह मायने नहीं रखता है कि कोई क्या सोचता है और होना भी ऐसा ही चाहिए।
हमारे समाज में निपल्स को लेकर लोगों को बहुत ज्यादा ऑब्सेशन है और इस पार्ट् को बहुत ज्यादा सेक्सुअलाइज़ किया जाता है हालांकि यह भी बाकी बॉडी पार्ट्स के जैसे ही हैं। आज के समय में बहुत सारे ऐसी मूवमेंट्स में मिल जाएगी जहां पर फ्री निपल्स का नारा लगाया जाता है और इसकी हमें बहुत ज्यादा जरूरत है। यह कोई वल्गर एक्ट नहीं है। इसके साथ ही हमें न्यूडिटी और वल्गैरिटी के बीच में फर्क समझने की भी बहुत जरूरत है ताकि हम ऐसे रवैये से बच सके।
इसके साथ ही महिलाओं को खुद को मेंटली स्ट्रांग करना चाहिए ताकि आपको ऐसे लोगों का सामना कर सके। इसके साथ ही जगह-जगह पर नर्सिंग रूम भी होने चाहिए जहां पर महिलाएं कंफर्टेबल होकर अपने बच्चों की देखभाल कर सकें। हमें भी चाहिए कि हम ऐसी महिलाओं के आसपास सुरक्षित माहौल पैदा करें जहां पर उन्हें अपने बच्चों के साथ कंफर्टेबल महसूस हो।