महिलाओं के कपड़ों को लेकर समाज में आज भी चरित्र का पैमाना तय किया जाता है, जबकि असली सवाल उनके पहनावे नहीं, बल्कि लोगों की छोटी सोच और जजमेंटल नज़रों का है।
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