हम ऐसे समाज में रहते हैं जहां महिलाओं की भावनात्मक ज़रूरतों पर तो थोड़ी बहुत बात होती है, लेकिन उनकी शारीरिक ज़रूरतों को अब भी नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। उन्हें सिखाया जाता है कि इस पर बात करना शर्म की बात है।
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