आज भी हमारे समाज में औरत को उसके कपड़ों से आंका जाता है। सवाल ये है कि जब कपड़े ही किसी औरत के किरदार से ज़्यादा मायने रखने लगें, तब उसकी असली कीमत कौन तय करता है, समाज, मीडिया या वह खुद?
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