Mental Health: आज की यंग जनरेशन मेंटल हेल्थ को कैसे हैंडल कर सकती है?

आज की यंग जनरेशन तेजी से बदलती ज़िंदगी, सोशल मीडिया के दबाव और करियर की टेंशन के बीच मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रही है।अपनी मेंटल हेल्थ को बेहतर कैसे बना सकते हैं।

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Sakshi Rai
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How can today’s young generation handle mental health: आज के युवा हर दिन ऐसे माहौल में जी रहे हैं, जहाँ पढ़ाई, करियर और समाज की उम्मीदों की रेस कभी खत्म ही नहीं होती। दिखावे की इस दुनिया में हम हंसते तो हैं, लेकिन भीतर कहीं न कहीं टूटते भी हैं। मानसिक स्वास्थ्य अब कोई बड़ी या दूर की बात नहीं रही, बल्कि हर किसी की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी है।

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युवाओं के बीच स्ट्रेस, एंग्जायटी, ओवरथिंकिंग और अकेलापन जैसी समस्याएं आम होती जा रही हैं पर अच्छी बात ये है कि इसे नजरअंदाज़ नहीं किया जा रहा। अब सवाल ये उठता है क्या हम अपनी मेंटल हेल्थ को ठीक कर सकते हैं? - हां, हम बात करेंगे उन असरदार तरीकों की, जिनसे आज की यंग जनरेशन मानसिक रूप से खुद को मजबूत बना सकती है और एक संतुलित, खुशहाल जीवन जी सकती है।

आज की यंग जनरेशन मेंटल हेल्थ को कैसे हैंडल कर सकती है?

आजकल के समय में मानसिक स्वास्थ्य एक बहुत बड़ा मुद्दा बन चुका है, खासकर युवाओं के लिए। पहले के समय में लोग मानसिक परेशानी को उतनी गंभीरता से नहीं लेते थे लेकिन अब धीरे-धीरे लोग समझने लगे हैं कि मन की शांति भी उतनी ही ज़रूरी है जितनी शरीर की सेहत।

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हर घर में अब ये देखने को मिलता है कि कोई न कोई बच्चा या युवा किसी न किसी मानसिक तनाव से जूझ रहा है। चाहे वह पढ़ाई का प्रेशर हो, करियर की चिंता, सोशल मीडिया का प्रभाव, रिश्तों में उलझन या फिर अकेलापन इन सभी चीज़ों का सीधा असर मानसिक स्थिति पर पड़ता है। कई बार फैमिली भी समझ नहीं पाती कि उनका बच्चा चुपचाप क्यों रहता है या हमेशा थका हुआ क्यों दिखता है। धीरे-धीरे जब हालात बिगड़ते हैं तब समझ आता है कि मामला सिर्फ आलस या मूड का नहीं था बल्कि मानसिक थकावट का था।

सबसे पहली बात ये समझनी होगी कि मानसिक सेहत को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। युवाओं को चाहिए कि वे अपने मन की बात खुलकर किसी अपने से शेयर करें चाहे वो माता-पिता हों, भाई-बहन, दोस्त या कोई काउंसलर। बात करना बहुत ज़रूरी होता है। कई बार सिर्फ सुन लिया जाना भी एक बड़ा हल होता है।

दूसरी बात रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कुछ ऐसे छोटे-छोटे बदलाव बहुत मददगार हो सकते हैं जैसे सुबह थोड़ा जल्दी उठना, सोशल मीडिया का कम इस्तेमाल करना, दिन में थोड़ा वक़्त खुद के लिए निकालना, किताबें पढ़ना या कोई हॉबी अपनाना। इन सबसे दिमाग को सुकून मिलता है और मन भी हल्का लगता है।

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तीसरी चीज़ है खुद को बार-बार यह याद दिलाना कि परफेक्ट होना ज़रूरी नहीं है। हम सब गलती करते हैं, थकते हैं, टूटते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम कमजोर हैं। खुद से प्यार करना, खुद को समय देना और अपनी सीमाओं को समझना बहुत ज़रूरी है।

हर परिवार को भी अब यह समझने की ज़रूरत है कि अगर कोई युवा चुप है या अलग सा बर्ताव कर रहा है तो उसे डांटने के बजाय समझने की ज़रूरत है। परिवार ही पहली जगह होती है जहाँ कोई खुद को सुरक्षित महसूस करता है। वहीं से इलाज शुरू हो सकता है समझ से, प्यार से, और साथ से।

Disclaimer: इस प्लेटफॉर्म पर मौजूद जानकारी केवल आपकी जानकारी के लिए है। हमेशा चिकित्सा या स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लेने से पहले किसी एक्सपर्ट से सलाह लें।

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