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समझे क्यूँ महिलाओं को Depression से है ज्यादा खतरा ?

महिलाओं में डिप्रेशन एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या है। जहाँ पुरुष अपने चिंता और तनाव को पार्टी करके दूर कर सकते है वही कुछ महिलाएँ अक्सर अपनी भावनाओं को दबा देती हैं, जिससे उन्हें अकेलापन और हताशा महसूस होती है।

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kukshita kukshita
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Understanding Why Women Are at a Higher Risk: महिलाओं में डिप्रेशन एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या है। जहाँ पुरुष अपने चिंता और तनाव को पार्टी करके दूर कर सकते है वही कुछ महिलाएँ अक्सर अपनी भावनाओं को दबा देती हैं, जिससे उन्हें अकेलापन और हताशा महसूस होती है। इससे उनका सामाजिक जीवन और व्यक्तिगत संबंध प्रभावित होते हैं। डिप्रेश महिलाएँ अक्सर निराशा, ऊर्जा की कमी और आत्म-सम्मान में कमी का अनुभव करती हैं। वे अपनी दैनिक गतिविधियों में भी रुचि खो देती हैं। महिलाओं में डिप्रेशन पुरुषों की तुलना में दोगुना होने की संभावना होती है और इसके पीछे कई कारण हैं। 

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महिलाओं में होने वाले डिप्रेशन के कारण 

पहला कारण है महिलाओं के शरीर में हार्मोनल बदलाव, जो उनके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। मासिक धर्म के समय, प्रसव के बाद (पोस्टपार्टम डिप्रेशन), और रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) के दौरान हार्मोनल अस्थिरता के कारण महिलाओं में मूड स्विंग्स और अवसाद की स्थिति उत्पन्न होती है। इन जैविक परिवर्तनों के कारण महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक मानसिक उतार-चढ़ाव का अनुभव करती हैं, जिससे उनके डिप्रेशन में जाने की संभावना अधिक होती है।

दूसरा कारण यह है कि महिलाएँ समाज में कई भूमिकाओं का निर्वहन करती हैं। एक ओर उन्हें एक अच्छी देखभाल करने वाली माँ और गृहिणी के रूप में देखा जाता है, वहीं दूसरी ओर उनसे बाहर के कार्यक्षेत्र में भी सफल होने की अपेक्षा की जाती है। यह भूमिकाओं के बीच संतुलन बनाए रखना महिलाओं के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। अक्सर महिलाएँ अपने जीवन में कुछ हासिल करने और अपना एक स्थान बनाने की चाह रखती हैं, लेकिन साथ ही वे इस चिंता में रहती हैं कि कहीं उनकी पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ, खासकर बच्चों की देखभाल, उपेक्षित न हो जाएं। यह लगातार संतुलन साधने की कोशिश और कठोर निर्णयों का सामना करना महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

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तीसरा कारण यह है कि महिलाएँ स्वभाव से ही "गिवर" यानी देने वाली होती हैं। समाज और संस्कृति के अनुसार उन्हें बचपन से ही दूसरों की देखभाल करने और अपनी आवश्यकताओं को पीछे रखने की सीख दी जाती है। जब कोई महिला कठिन समय से गुजर रही होती है, तब भी वह खुद की देखभाल के बारे में नहीं सोचती और खुद को हर तरह से दूसरों के लिए समर्पित कर देती है। वह अक्सर यह नहीं पूछती कि उसे खुद के लिए क्या चाहिए या वह किस मानसिक स्थिति में है। इसी प्रकार, महिलाएँ खुद को तब तक धकेलती रहती हैं जब तक कि उनका मानसिक और शारीरिक संतुलन पूरी तरह से बिगड़ न जाए। जब तक वे एक गंभीर अवसाद या टूटने की स्थिति में नहीं पहुँचतीं, तब तक वे खुद की मानसिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं पर ध्यान नहीं देतीं।

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