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Photograph: (Freepik)
आज की तेज़-रफ़्तार दुनिया में बच्चों की इमोशनल हैल्थ उतनी ही ज़रूरी है जितनी उनकी फिज़िकल हैल्थ। लगातार बदलती परिस्थितियाँ, सोशल मीडिया का एक्सपोज़र और बढ़ती एक्सपेक्टेशन्स, ये सब बच्चों के दिमाग और दिल पर गहरा असर डालते हैं। ऐसे में बच्चों को इमोशनली स्ट्रॉंग बनाना कोई एक दिन का काम नहीं, बल्कि एक कंटीन्युअस जर्नी है। ये तब शुरू होती है जब बच्चा महसूस करता है कि घर एक सेफ स्पेस है, जहाँ उसे अपनी हर फीलिंग के साथ एक्सेप्ट किया जाता है।
Parenting Tips: बदलती दुनिया में बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत कैसे बनाएं?
1. बच्चों को अपनी फीलिंग्स पहचानना सिखाएँ
अक्सर बच्चे ये नहीं समझ पाते है कि जो वो फील कर रहे हैं, उसे कैसे व्यक्त करें। जब आप उनसे पूछते हैं “क्या तुम गुस्से में हो या दुखी हो?”, तो वो धीरे-धीरे अपनी फीलिंग्स को पहचानना सीखते हैं। इससे वो सिचुएशंस को बेहतर समझते हैं और खुद को कंट्रोल करना सीखते हैं।
2. ट्रस्ट का रिश्ता बनाइए
बच्चे तभी खुलकर बात करते हैं जब उन्हें ट्रस्ट होता है कि उन्हें जज नहीं किया जाएगा। उनकी हर बात ध्यान से सुनें, चाहे वो कितनी भी छोटी क्यों ना लगे। ऐसा रिश्ता उन्हें इमोशनल सेफ्टी देता है और उन्हें सिखाता है कि वो अपनी फीलिंग्स के साथ सेफ हैं।
3. शांत रहने के तरीके सिखाएँ
जब बच्चा गुस्से या स्ट्रेस में हो, तो उसे सिखाएँ कि डीप ब्रीदिंग, थोड़ी देर टहलना या अपनी सोच को लिखना कैसे उसकी हेल्प कर सकता है। इससे वो छोटी उम्र में ही सेल्फ-रेग्युलेशन सीखता है, जो इमोशनल स्ट्रेंथ की बुनियाद है।
4. डेली रूटीन और प्रॉब्लम सॉल्विंग हैबिट
जब बच्चे का डेली रूटीन बैलेंस्ड होता है, तो उसका माइंड भी स्टेबल रहता है। साथ ही, हर छोटी प्रॉब्लम पर तुरंत हेल्प देने के बजाय, उसे खुद सोचने दें और पूछें, “तुम्हें क्या लगता है, इसे कैसे सोल्व किया जा सकता है?”। ये तरीका उन्हें मेंटली इंडीपेंडेंट बनाता है।
5. स्क्रीन टाइम और सोशल मीडिया का बैलेंस ज़रूरी
आज की डिजिटल दुनिया में ये सबसे बड़ा चैलेंज है। बच्चों को ये समझाना ज़रूरी है कि सोशल मीडिया किसी की रियल लाइफ नहीं दिखाता। ऑनलाइन दुनिया से कनेक्टेड रहें, लेकिन उसे खुद पर हावी ना होने दें। बच्चों को ये लेसन बचपन से देना ज़रूरी है।
6. इमोशनल लेबर और काइंडनेस सिखाएँ
बच्चों को एम्पैथी सिखाना उतना ही ज़रूरी है जितना रीडिंग या राइटिंग। जब वो दूसरों की फीलिंग्स समझना सीखते हैं, तो वे इमोशनली बैलेंस्ड और कंपैशनेट इंसान बनते हैं।
7. खुद एक उदाहरण बनें
पेरेंट्स का बिहेवियर ही उनका पहला लर्निंग ग्राउंड है। अगर आप स्ट्रेस या गुस्से को calm तरीके से हैंडल करते हैं, तो वो भी ऐसा ही करना सीखेंगे। बच्चे देख कर एब्सॉर्ब करते हैं, इसलिए स्ट्रॉंग बनने की सबसे पहली और बड़ी शुरुआत घर से ही होती है।
8. सेफ कम्युनिकेशन स्पेस बनाइए
घर में ऐसा माहौल बनाएँ, जहाँ बच्चा जजमेंट या डांट के डर के बिना बात कर सके। अगर बच्चा गलत भी हो, तो पहले उसे सुनें, समझें और फिर calmly समझाएँ। इमोशनल सेफ्टी ही कॉन्फिडेंस की पहली सीढ़ी होती है।
9. ‘छोटे अचीवमेंट्स’ सेलिब्रेट करें
हर बार बड़े मार्क्स या ट्रॉफीज़ नहीं मिलतीं, पर बच्चे का छोटा स्टेप भी acknowledgment डिज़र्व करता है। जैसे किसी दोस्त की हेल्प करना, खुद से कोई काम पूरा करना या हार मानने के बाद फिर कोशिश करना। इस तरह की छोटी जीत उन्हें इमोशनली रेज़िलिएंट बनाती हैं।
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