जानिए एक Single Mother की चुनौतियां जिनके बारे में कोई बात नहीं करता

भारत में सिंगल मदर्स साहस से जीवन संभालती हैं, पर उनकी असल चुनौतियाँ, जैसे आर्थिक बोझ, अकेलापन, जजमेंट, स्वास्थ्य और सपोर्ट की कमी, अक्सर अनदेखी रह जाती हैं।

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Kopal Porwal
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Mother

Photograph: (Freepik)

भारत में सिंगल मदर होना बिल्कुल आसान नहीं है। समाज में उनके साहस और आत्मविश्वास की प्रशंसा तो की जाती है, लेकिन उनके संघर्षों पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। भारत में लंबे समय से मौजूद पितृसत्ता के कारण उनकी चुनौतियाँ और भी कड़ी हो जाती हैं।

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जानिए एक Single Mother की चुनौतियां जिनके बारे में कोई बात नहीं करता

ससुराल का समर्थन न मिलना

बेटे की मृत्यु हो जाने या तलाक के बाद, अक्सर देखा गया है कि ससुराल वाले बहू को सम्मान और समर्थन देना बंद कर देते हैं, चाहे वह भावनात्मक हो, आर्थिक हो या मानसिक। कई परिवार बच्चे को भी स्वीकार नहीं करते और उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। इससे महिला पर बोझ और अकेलापन और बढ़ जाता है।

स्वास्थ्य पर असर

अपने प्रिय को खोना हो या तलाक, ये दोनों ही स्थितियाँ बेहद कष्टदायक होती हैं। सिंगल मदर बनने के बाद उन पर जिम्मेदारियों का अतिरिक्त दबाव बढ़ जाता है, जिससे मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद तक हो सकता है। यदि परिवार का समर्थन न मिले, तो उनका भावनात्मक स्वास्थ्य तेजी से प्रभावित होता है। खानपान का ध्यान न रख पाने से शारीरिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ता है।

आर्थिक ज़िम्मेदारियाँ

सिंगल मदर्स को पूरे घर की आर्थिक जिम्मेदारी निभानी होती है, बच्चे की देखभाल, खाना, फीस, रोज़मर्रा के खर्चे, इंश्योरेंस, लोन आदि सब कुछ। अगर वे पहले आर्थिक रूप से आश्रित थीं, तो उन्हें तुरंत नौकरी खोजनी पड़ती है। सीमित आय में हर खर्च सोच-समझकर करना पड़ता है, जिससे मानसिक दबाव और बढ़ जाता है।

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सामाजिक उत्पीड़न और जजमेंट

सिंगल मदर्स को अक्सर “दया” की नजर से देखा जाता है, जबकि वे अत्यंत सशक्त और सक्षम होती हैं। रिश्तेदारों की दखलअंदाज़ी, अफवाहें, ताने और गलत नज़र से देखना, ये सब उनकी भावनात्मक सेहत को चोट पहुँचाते हैं। यह समाज की महिलाओं के प्रति भावनात्मक समझ की कमी को भी उजागर करता है।

पैरेंटिंग में अकेलापन

बच्चों की परवरिश सामान्यतः माता-पिता दोनों की जिम्मेदारी होती है, लेकिन सिंगल मदर्स यह सब अकेले संभालती हैं। दो लोगों का काम एक व्यक्ति द्वारा करना न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक रूप से भी बेहद थका देने वाला होता है। बच्चे की पढ़ाई, स्वास्थ्य, स्कूल मीटिंग्स, हर निर्णय अकेले लेना पड़ता है, जिससे मानसिक बोझ और बढ़ जाता है।

करियर पर असर

जिम्मेदारियों, तनाव और समय की कमी के कारण कई सिंगल मदर्स के करियर पर गहरा असर पड़ता है। बच्चों और घर की जरूरतों को प्राथमिकता देते हुए उन्हें कई बार अच्छे अवसर छोड़ने पड़ते हैं। अपनी पसंद का काम या करियर ग्रोथ शांतिपूर्वक जारी रखना उनके लिए चुनौती बन जाता है।

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भावनात्मक प्रभाव

लगातार काम में व्यस्त रहने और जिम्मेदारियों के कारण सिंगल मदर्स के पास खुद के लिए समय नहीं बचता। वे अपने शौक, सपने और छोटी खुशियों को पीछे छोड़ देती हैं। उनके मन में हमेशा अकेले होने का संघर्ष और एक बड़े बोझ की भावना रहती है, जिससे वे भावनात्मक रूप से थक जाती हैं।

पुनर्विवाह का स्टिग्मा

सिंगल मदर्स जीवन में दोबारा शुरुआत करने से भी हिचकती हैं, क्योंकि उन्हें बच्चों के भविष्य और समाज की सोच की चिंता होती है। समाज आज भी मानता है कि एक महिला का दोबारा शादी करना “ज़रूरत” नहीं बल्कि “गलत प्राथमिकता” है। इन धारणाओं के बीच महिला की अपनी इच्छाएँ, उसका अकेलापन और उसकी भावनाएँ अनदेखी रह जाती हैं। कई महिलाएँ पुनर्विवाह का निर्णय इसलिए टाल देती हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि लोग उन्हें “स्वार्थी” न कह दें या बच्चे की कस्टडी को लेकर जजमेंट न करें।

सपोर्ट सिस्टम की कमी

कुछ सिंगल मदर्स को परिवार या दोस्तों का साथ मिलता है, लेकिन कई महिलाएँ पूरी तरह अकेली लड़ाई लड़ती हैं। समय, समझ और भरोसेमंद मदद की कमी कई बार उन्हें मानसिक थकावट और बर्नआउट के करीब पहुँचा देती है।

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