Debunking Myths About Feminism: फेमिनिज्म के बारे में आज भी बहुत सारे लोगों में गलत अवधारणाएं हैं। इसके बहुत सारे कारण हैं लेकिन अभी लोगों में इसकी सही जानकारी पहुंच रही है। इसमें सोशल मीडिया का भी बहुत बड़ा हाथ है। फेमिनिज्म की बात की जाए तो इसका उद्देश्य समाज में समानता लाना है। हमारे समाज में ज्यादातर अन्याय महिलाओं के साथ होता रहा है और अभी भी हो रहा है। इसलिए फेमिनिज्म के जरिए महिलाओं की बात ज्यादा होती है लेकिन जहां पर पुरुषों के साथ भी गलत होता है, वह भी पितरसत्ता सोच का शिकार होते हैं तब उनके हकों की भी बात होती है। यह देखने का नजरिया है और कुछ भी नहीं है। चलिए बात करते हैं कुछ ऐसी धारणाओं के बारे में जो फेमिनिज्म के बारे में आम ही प्रचलित हैं और इसका सब जानते हैं-
फेमिनिज्म से जुड़ी मिथ्स की सच्चाई जानें
पुरषों से नफरत
फेमिनिज्म के बारे में एक धारणा यह भी है कि इसमें पुरुषों से नफरत की जाती है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। ऐसे बहुत सारी स्टीरियोटाइप है जिनका फेमिनिज्म विरोध करता है जैसे समाज में पुरुषों को रोने नहीं दिया जाता है लेकिन फेमिनिज्म के अनुसार रोना एक भाव है और इसका जेंडर से कोई लेना-देना नहीं है। इसके साथ घर की आर्थिक जिम्मेदारियां सिर्फ पुरुष ही नहीं महिलाओं की भी जिम्मेदारी है। यह कहना बिल्कुल गलत होगा कि फेमिनिज्म पुरुषों से नफरत करता है या फिर जो महिलाएं फेमिनिस्ट होती हैं, उन्हें पुरुष अच्छे नहीं लगते हैं। हमें उन पुरुषों से दिक्कत है जो महिलाओं की इसलिए रिस्पेक्ट नहीं करते हैं क्योंकि वह महिला है। उन्हें लगता है कि हम महिलाओं के साथ कुछ भी कर सकते हैं क्योंकि हम पुरुष हैं।
यह केवल महिलाओं के लिए है
यह बिल्कुल झूठ है कि फेमिनिज्म केवल महिलाओं के लिए है। यह हर उस कम्युनिटी की बात करता है जिसके साथ अन्याय हो रहा है। उसमें पुरुष में शामिल हैं। इसके साथ ही इसमें एलजीबीटी (LGBTQ)के हको की भी बात होती है। अगली बार जब आपको कोई कहे कि फेमिनिज्म सिर्फ महिलाओं के लिए है तो आप तुरंत इस बात को ठीक करें। यह उन स्टीरियोटाइप के का विरोध करता हैं जिसमें महिलाओं को पुरुषों से कम समझ जाता है। यह पूरे समाज के लिए है जिसका मुख्य उद्देश्य सामान्यता लाना है ताकि किसी भी व्यक्ति को जेंडर के कारण भेदभाव न सहन करना पड़े।
पुरुषों को महिलाओं से नीचे रखना है
एक बात यह भी सुनने को मिलती है कि फेमिनिज्म में म महिलाएं चाहती हैं कि पुरुषों को अपने नीचे रखा जाए लेकिन यह तो बराबरी की करता है। अगर फेमिनिज्म यही चाहता है तो अभी जो सामाजिक ढांचा है और जो फेमिनिज्म लाना चाहता है तो उसमें तो कोई फर्क ही नहीं होगा। हमें इस बात को ठीक करने की जरूरत है। फेमिनिज्म में ऐसा कुछ नहीं है। यह दोनों की सामान्यता के बारे में बात करता है। इसका मुख्य उद्देश्य ही यह है कि किसी के साथ भी जेंडर के कारण भेदभाव नहीं होना चाहिए। हम सब बायोलॉजिकली अलग हो सकते हैं लेकिन सिर्फ जेंडर के कारण हमारी योग्यता के ऊपर शक नहीं किया जा सकता है।
यह फैमिली या मदरहुड के खिलाफ है
फेमिनिज्म हमारे रीति रिवाज के खिलाफ नहीं है। यह सिर्फ उसे पितृसत्ता सोच के खिलाफ है जिसमें महिलाओं को नीचे दिखाया जाता है। यह सिर्फ उनके ऊपर सवाल उठता है कि ऐसा क्यों है? इसके साथ ही यह शादी के खिलाफ भी नहीं है। फेमिनिज्म का मतलब है कि आप अपनी मर्जी से अपने लिए फैसला ले सकते हैं। अगर आपको शादी के लिए जबरदस्ती की जा रही है, तो गलत है। अगर शादी आपकी चॉइस है तब कुछ भी गलत नहीं है। अगर एक महिला घर पर रहकर बच्चों को जन्म देना चाहती है, उनका पालन पोषण करना चाहती है और हाउसवाइफ होना उसकी चॉइस है तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है। सवाल यह है कि हम सभी को एक सामाजिक ढांचे में रहने के लिए मजबूर करते हैं लेकिन फेमिनिज्म कहता है कि यहां पर सबकी अपनी चॉइस है और उनके पास अधिकार हैं।
यह वेस्टर्न कॉन्सेप्ट है
यह कोई भी वेस्टर्न कॉन्सेप्ट नहीं है। यह एक ऐसा टॉपिक है जिसका संबंध पूरे विश्व से है। यह धरती के हर कोने में हो रहे अन्याय के ऊपर बात करता है। अगर आपके साथ कोई भी भेदभाव हो रहा है तो फेमिनिज्म उसको इसका विरोध करता है।किसी भी व्यक्ति के साथ चाहे महिला हो या पुरुष, उनके साथ जेंडर के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। हर व्यक्ति को पास चॉइस है। वह अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जी सकता है। इसके लिए उन्हें किसी की वैलिडेशन की जरूरत नहीं है। हमारे समाज में बहुत सारे बदलावों की जरूरत हैं जिसके लिए हमें फेमिनिज्म चाहिए और हमें इसका सही मतलब समझने की सख्त जरूरत है।