Lohri 2024: उत्तर भारत में लोहड़ी का त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार पंजाबियों की जान है और साल का पहला त्यौहार होता है। इस दिन को लोग साग मक्की की रोटी, सरसों का साग, रेवड़ी और मूंगफली आदि के साथ मनाते हैं। आईए जानते हैं कि इस त्यौहार का क्या महत्व है-
Lohri 2024: इन पॉइंट्स में समझें लोहड़ी का त्यौहार
अग्नि जलाते हैं
इस पर्व को मनाने के लिए सबसे पहले लोग अपने घरों पर शाम को अग्नि जलाते हैं। इस अग्नि को लकड़ी और उपलों के साथ जलाया जाता है। इसमें तिल, पोहा, मूंगफली रेवड़ी और गच्चक आदि को इस जलती हुई आग में डाला जाता है। इसके बाद मूली का शगुन किया जाता है जिसे अगले दिन सुबह उठकर खाया जाता है। लोहड़ी के इस पावन अवसर पर सभी लोग अग्नि के चक्कर लगाते हैं और धूमधाम से इस त्यौहार को मनाते हैं। इसके बाद एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हुए लोहड़ी के गीत गाते हैं।
दुल्ला भट्टी
लोहड़ी के त्योहार पर दुल्ला भट्टी का जिक्र ना किया जाए ऐसा नहीं हो सकता। आईए जानते हैं 'दुल्ला भट्टी' कौन था। दुल्ला भट्टी अकबर के शासन में एक लुटेरा था जो पंजाब में रहता था। यह अमीर लोगों को लूटता था और गरीबों में बांट देता था। लोगों की तरफ से उसे बहुत प्यार किया जाता था और इज्जत भी काफी मिलती थी। उसे समय में लड़कियों को बाजार में बेच दिया जाता था। दुल्ला उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवा देता था। इसके बाद से ही इस घटना को लोहड़ी के साथ जोड़ दिया गया। बहुत सारे लोहड़ी से जुड़े गीतों में भी दुल्ला भट्टी का जिक्र आता है।
लोकगीत
लोहड़ी के त्योहार पर लोकगीतों की भी काफी मान्यता है। इस दिन लोग एक साथ मिलकर लोहड़ी के गीत गाते हैं। छोटे-छोटे बच्चे भी लोगों के घरों में जाकर लोहड़ी मांगते हैं। लोहड़ी मांगते समय वह इन लोकगीतों का प्रयोग करते हैं। लोग भी खुशी से उन्हें शगुन देते हैं। इनमें से एक लोकगीत 'सुंदर मुंदरिए' बहुत प्रसिद्ध है।
सुन्दर मुंदरिए
तेरा कौन विचारा
दुल्ला भट्टीवाला
दुल्ले दी धी व्याही
सेर शक्कर पायी
कुड़ी दा लाल पताका
कुड़ी दा सालू पाटा
सालू कौन समेटे
'मक्की दी रोटी सरों दा साग'
लोहड़ी के उत्सव पर लोग घरों में खास रूप से 'मक्की की रोटी' और 'सरसों का साग' बनाते हैं। इसके साथ ही 'गन्ने के रस के चावल' भी तैयार किए जाते हैं जो लोग बड़े उत्साह और ख़ुशी से खाते हैं। इसके साथ ही रात को जब सभी अग्नि के पास बैठते हैं तो मूंगफली और रेवड़ी खातें हैं। इस त्यौहार को लोग नाचते और गाते हुए एक साथ सेलिब्रेट करते हैं।
ईशर आए दलिदर जाए, दलिदर दी जड चूल्हे पाए
इस दिन लोग सूर्य देव की पूजा करते हैं। यह त्यौहार खास तौर पर पौष के महीने में आता है जिसमें सर्दी का मौसम होता है। इससे राहत पाने के लिए लोग सूर्य देव से गर्मी और सूर्य के लिए प्रार्थना करते हैं। लोग यह भी कहते हैं कि 'ईशर आए दलिदर जाए, दलिदर दी जड चूल्हे पाए', जिसका मतलब है हमारा आलस्य इस जलती हुए अग्नि के साथ ही खत्म हो जाए।
मकर संक्रांति का त्यौहार
लोहड़ी के अगले दिन 'मकर संक्रांति' का त्यौहार मनाया जाता है जिसका भी अपना खास महत्व है इस दिन को 'माघी' भी कहा जाता है। मकर संक्रांति का हर राज्य में अपना अपना महत्व है। पंजाब की बात की जाए तो इस दिन 'श्री मुक्तसर साहिब' में 'माघी' का मेला मनाया जाता है।