Constitution Day 2025: संविधान में महिलाओं के अधिकारों का सफर

भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को अपनाया और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इसकी पूरी प्रक्रिया में 2वर्ष 11माह और 18दिन का समय लगा। संविधान सभा में महिला सदस्यों की संख्या कम और सीमित थी, लेकिन उन्होंने भारत की सभी महिलाओं के लिए मत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया था।

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Nainsee Bansal
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 (India Today)

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Constitution Day एक ऐसा दिन जब भारत को संगठित और लिखित कानूनी दस्तावेज मिला जिसे भारत का संविधान का नाम मिला। इस दस्तावजे को हकीकत में बदलने में सिर्फ स्वतंत्रता क्रांतिकारियो का हाथ नहीं बल्कि पूरे देश का संघर्ष रहा हैं। भारत का संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है बल्कि देशवासियों से समानता और न्याय का वादा हैं। संविधान की प्रकिया में महिलाओं ने सिर्फ सहभागिता ही नहीं ली बल्कि महिलाओं के पक्ष को कानून के रूप में बदला हैं। संविधान सभा में महिलाओं की भागीदारी सीमित थी, लेकिन उनकी आवाज ने महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया। स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका ने यह सुनिश्चित किया कि संविधान में समानता का वादा शामिल हो। 

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Constitution Day 2025: संविधान में महिलाओं के अधिकारों का सफर

संविधान का सफर 

भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।  संविधान सभा में पुरुषों की तुलना में महिला सदस्यों की संख्या कम और सीमित थी, लेकिन उनकी आवाज ने भारत की सभी महिलाओं के लिए मत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया था। जुलाई 1946 में संविधान सभा के चुनाव हुए। 9 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई लेकिन कैसे संविधान का प्रारूप तय होगा यह सुनिश्चित न था। लेकिन उसके बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया। डॉ. बी. आर. अंबेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया।  और यह प्रकिया चलती रही। इसकी पूरी प्रक्रिया में जुलाई 1946 से जनवरी 1950 तक चली जिसमे 2वर्ष 11माह और 18दिन का समय लगा।

महिलाओं के लिए संवैधानिक प्रावधान (Constitution Provisions for Women)

समानता का अधिकार: आर्टिकल 14

संविधान में इस अनुच्छेद का होना समानता का अधिकार तय करता हैं। जब भी रोजगार, लिंग और क्षेत्र किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं होगा और यदि होता हैं नागरिक इस अनुच्छेद के तहत न्याय का हिस्सेदार हैं। यह पुरुषवादी समाज में महिला और पुरुष दोनों को समान रूप से प्राप्त हैं। कानून यह सुनिश्चित करता हैं कि महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर अधिकार हो।

महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाने की अनुमति: आर्टिकल 15(3)

राज्य महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बना सकता हैं। यह सकारात्मक भेदभाव की संवैधानिक स्वीकृति हैं। क्योंकि कुछ स्थिति में बच्चे और महिलाओं को विशेष प्रावधान की आवश्यकता होती हैं जो दिए अनुच्छेद से पूरी नहीं हों सकती हैं। इस स्थिति में नए प्रावधान उनकी सुरक्षा और स्वंतत्रता के लिए बनाने का प्रावधान संविधान सरकार और कानून को देता हैं।

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रोजगार में समान अवसर: आर्टिकल 16

सरकारी नौकरियों और पदों के लिए महिला और पुरुष दोनों को समान अवसर मिलेंगे। साथ ही रोजगार के अवसरों में महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। यह अनुच्छेद एंप्लॉयमेंट के equal और सही ऑपर्च्युनिटी को सपोर्ट करता हैं। शिक्षा और रोजगार में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी इसी आर्टिकल का परिणाम हैं।

समान वेतन का प्रावधान : आर्टिकल 39(d)

अक्सर समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर काम करने पर भी कम वेतन दिया जाता हैं। ऐसे में मौलिक अधिकार का अनुच्छेद 39(d) यह तय करता हैं कि समान काम के लिए समान वेतन दिया जाएगा। 

मैट्रिनल बेनिफिट और कार्य की न्यायसंगत स्थिति (आर्टिकल 42)

राज्य को महिलाओं के लिए मातृत्व लाभ और कार्य  की न्यायसंगत कंडीशन सुनिश्चित करनी चाहिए। साथ ही वर्तमान में मां को मिलने वाली पेड लीव इसी का पॉजिटिव परिणाम हैं। साथ ही इसके अंतर्गत workplace हैरेसमेंट को रोकने के लिए जो प्रावधान किए गए हैं।

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वर्तमान परिप्रेक्ष्य

महिलाओं के Constitutional Rights पर नए कानूनों का संशोधन जैसे घरेलू हिंसा अधिनियम और मैटरनल बेनिफिट्स संविधान की मूल भावना को आगे बढ़ाते हैं। न्यायपालिका ने कई ऐतिहासिक फैसलों से महिलाओं के अधिकारों को मजबूती दी हैं। जैसे विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) में कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन से सुरक्षा। समाज में पितृसत्तात्मक सोच को चुनौती देना और मौलिक अधिकार से सभी को समान अधिकार देना भी तो एक सकारात्मक पहल थी। आज जो देश नागरिकों के लिए सुनियोजित शासन और व्यवस्था से चल रहा हैं वह संविधान सभा के सदस्यों के सकारात्मक योगदान का ही सफल परिणाम हैं।

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