Why Are Girls Taught To Shut Up And Endure: अगर आप आज के समय में कहेंगे की लड़कियों को चुप रहना और सहना सिखाया जाता है तो शायद इसे सच नहीं माना जाएगा। अब समय बदल गया है। क्या समाज सच में बदल गया है? क्या आज के समय में मां-बाप के द्वारा लड़कियों को अपने लिए बोलना सिखाया जाता है? इसका जवाब बहुत हद तक नहीं होगा, क्योंकि अगर मां-बाप की तरफ से ऐसी शिक्षा दी होती तो आज भी लड़कियां मारपीट, मानसिक और शारीरिक एब्यूज, दहेज और कन्या भ्रूण हत्या आदि का शिकार ना होती।
क्यों लड़कियों को चुप रहना और सहन करना सिखाया जाता है?
महिला जब तक घर से बाहर नहीं निकलती तब तक वह एक ऐसे जॉन में रहती है जहां पर वह खुद फैसला नहीं लेती, उसके पास आर्थिक रूप से आजादी नहीं होती। उसे चुप रहना और सहन करना सिखाया जाता है। वह अपनी मर्जी से बाहर जाकर कुछ करना चाहती है तो उसे जज किया जाता है। आज भी लड़कियां घर पर प्रेम विवाह के लिए नहीं कह सकती। इन सब चीजों के लिए अभी महिलाओं की लड़ाई बहुत लंबी चल रही है। ऐसा नहीं है कि कुछ भी बदलाव नहीं हो रहा लेकिन यह बदलाव बहुत कम है और कुछ स्तर पर ही हो रहा है। यह चीज़ बहुत कॉम्प्लिकेटेड है। इस पर किसी को जज नहीं किया जा सकता। यह सोच की बात है।
बड़े शहरों में यह चीजें बदल गई होगी लेकिन जब हम भारत के रिमोट एरियाज की बात करते हैं तो आज भी महिलाएं घुंघट के पीछे रहती है। उन्हें मूलभूत सुविधाएं भी प्राप्त नहीं है। पानी लेने के लिए कोसों दूर जाना पड़ता है। महिलाएं सिर्फ इसलिए नहीं पढ़ पाती क्योंकि उन्हें घर के काम करने हैं। ऐसी स्थिति में हम यह नहीं कह सकते कि महिलाओं के हालात सुधर गए हैं।
सुधार लाने की जरुरत
मां-बाप को पेरेंटिंग के स्टाइल में बदलाव लाना चाहिए। खासकर जब बेटियों की बात आती है तो उन्हें सशक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए। उन्हें बचपन से ही यह सीख देनी चाहिए कि महिला और मर्द बराबर होते हैं। इनमें बायोलॉजिकल पहलू से फर्क हो सकता है लेकिन काबिलियत को जेंडर के आधार पर जज करना बिल्कुल भी सही नहीं है। ऐसा लोग कह देते हैं की औरत और मर्द बराबर नहीं हो सकते। जब भी बराबरी की बात होती है तो सिर्फ महिला ही क्यों प्रेग्नेंट होती है, मर्द क्यों नहीं। यह एक इलॉजिकल बात है। इक्वलिटी का मतलब यह नहीं है। इसका मतलब है कि सिर्फ जेंडर के आधार पर आपको कम मौके मिले या मौका दिया ही ना जाए, वह बात बिल्कुल गलत है।