क्यों महिलाओं को अपने माँ-बाप की देखभाल के लिए पति से पूछना पड़ता हैं ?

शादी में दो लोग एक साथ ज़िंदगी को बिताने का फ़ैसला करते है लेकिन लड़के के माँ-बाप बीमार हो जाए तब सभी बहु पर नज़रें टिकाए होते कि वह उन्हें देखेंगी। जब लड़की की माँ-बाप को उसकी ज़रूरत होती है तब क्यों औरत को पर्मिशन लेनी पड़ती है।

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Rajveer Kaur
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Symbol Of Suhaag After Marriage(Unsplahs.com)

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शादी एक ऐसा बंधन जिसमें महिलाओं को मर्दों से ज़्यादा कॉम्प्रॉमायज़ करना पड़ता है। सबसे पहले अपना घर, परिवार छोड़ना पड़ता है। कई बार दोस्त भी छूट जाते है। इसके बाद सास-ससुर के साथ बांडिंग बनाना उनके हिसाब से अपनी आदतों को बनाना पड़ता है। दूसरी तरफ़ मर्द की ज़िंदगी में बहुत कम बदलाव आते है उस पर कोई दबाव नहीं होता है लेकिन कई पति अपनी पत्नी पर ज़रूर दबाव डालते है कि उसे उसके परिवार के हिसाब रहना सीखना चाहिए।

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इसके साथ वह चाहता है जो चीज़ उसे या उसके माँ-बाप को नहीं अच्छी लगती है उसे नहीं करनी चाहिए चाहे वे औरत को पसंद ही हो लेकिन उसकी चॉईस की किसी कोई परवाह नहीं होती है। इस ब्लॉग शादी से जुड़े एक ऐसे ही टॉपिक पर बात करेंगे-

क्यों महिलाओं को अपने माँ-बाप की देखभाल के लिए पति से पूछना पड़ता हैं ?

  • शादी में understanding होना ज़रूरी

    शादी में दो लोग एक साथ ज़िंदगी को बिताने का फ़ैसला करते है लेकिन फ़र्ज़ ज़्यादा औरत को ही पूरे करने पड़ते है। लड़के के माँ-बाप बीमार हो जाए तब सभी बहु पर नज़रें टिकाए होते कि वह उन्हें देखेंगी। जब लड़की की माँ-बाप को उसकी ज़रूरत होती है तब क्यों औरत को पर्मिशन लेनी पड़ती है। क्या शादी के बाद उसका अपने परिवारहक़ ख़त्म हो जाता है।यह तो एक आम समझ होनी चाहिए कि अगर पत्नी लड़के के माँ-बाप बिना किसी सवाल से उनकी देखभाल कर रही है तो पति भी पत्नी का पूरा साथ दे। पत्नी को किसी इजाज़त की ज़रूरत न पड़े बल्कि पति खुद कहे चलो हम साथ में उन्हें देखते हैं।
  • शुरू से मर्दों को इस बात को सिखाने की ज़रूरत

    महिला को शुरू से सिखाया कि अपने ससुराल को अपना परिवार ही मानना। उन्हें अपने माँ-बाप जैसे ही समझना कुछ भी हो जाएँ लेकिन तुम कुछ मत कहना। क्या कभी यह  सीख मर्द को सिखाई जाती है बेटा अपने पत्नी के माँ-बाप भी तुम्हारे ही है अगर उन्हें कभी ज़रूरत पड़े तो तुम पहले खड़े होना। लड़कियाँ पति के लिए घर भी छोड़ जाती है लेकिन अपने परिवार के लिए पति की इजाज़त चाहिए।
  • कब ख़त्म होगी पित्तरसत्तात्मक सोच

    आज भी ऐसी पित्तरसत्तात्मक सोच हमारे समाज में प्रचलित है। हमें लगता है कि महिलाओं की दशा सुधार गई है लेकिन ऐसा नहीं है। कई ऐसे स्थान है यह महिलाएँ आज भी घूँघट में रहती है। कई महिलाएँ ऐसी भी जो सशक्त भी और आर्थिक रूप से आज़ाद भी लेकिन फिर भी वे अपने फ़ैसले खुद नहीं कर सकती है क्योंकि वे मानसिक रुप से आज़ादी नहीं है। इसलिए महिलाएँ मानसिक रुप से आज़ाद हो उन्हें समझन होगा कि ये लाइफ़ उनकी है उन्हें किसी भी चीज़ के लिए चाहे वे परिवार के बारे में कोई फ़ैसला हो या अपने इसके लिए किसी से पूछने की ज़रूरत नहीं इसमें एक दूसरे की इज्जत और सम्मान की ज़रूरत है।