Marital Rape: क्यों आज भी पति द्वारा की गई यौन हिंसा हैं जायज?

भारत में पत्नी को पति की संपत्ति क तरह देखा जाता हैं, शादी की संस्था में प्रवेश के साथ ही कानूनी रूप से इसे sex के लिए consent मौजूद मान लिया जाता हैं। प्रश्न यह हैं,  क्या शादी महिला की मंजूरी के बिना भी शारीरिक सम्बन्ध बनाने का पति के लिए लाइसेन्स हैं?

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Nainsee Bansal
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marital rape is rape aur authority

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शादी भारत में सबसे ज्यादा बड़ाऔर अधिक मनाने  वाला त्यौहार हैं, जिसमें समाज इस संस्था में दो लोगों को co-existence की मंजूरी देता हैं। लेकिन वही दोनों की बराबर सहमति के वावजूद भी शादी के बाद पत्नी को पति की संपत्ति क तरह देखा जाता हैं, शादी की संस्था में दोनों के प्रवेश के साथ ही भारत में कानूनी रूप से इसे sex consent मौजूद मान लिया जाता हैं। लेकिन प्रश्न यह हैं,  क्या शादी महिला की मंजूरी के बिना भी शारीरिक सम्बन्ध बनाने का पति के लिए लाइसेन्स हैं?भारत में यदि पत्नी 18 वर्ष से अधिक हैं तो पति द्वारा उससे शारीरिक संबंध बनाना कानूनी रूप से बालत्कार नहीं माना जाता हैं। इसका मतलब शादी की संस्था में पति द्वारा जबरदस्ती के लिए पति को दंडित नहीं किया जा सकता हैं। 

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Marital Rape: क्यों आज भी पति द्वारा की गई यौन हिंसा हैं जायज?

पत्नी की सहमति शारीरिक संबंध में जरूरी नहीं, लेकिन क्यों ?

आज भी शादी के बाद यदि महिला शारीरिक संबंध के लिए मना करती हैं तो उसकी "मना" को "हाँ" में या आवश्यक नहीं समझा जाता हैं चाहे वो समाज के नजरिए में हो या कानून के। कई महिलाओं द्वारा किए जाने वाले केस दर्ज में अक्सर उन्हें domestic violence के कानून के तहत राहत  मिलता हैं, पर इस पर कोई कानून नहीं जो पति द्वारा यौन हिंसा को मैरिटल-रेप का दर्जा दें। इस पर होने वाले विवादों में इस प्रस्ताव को इसलिए खारिज किया गया कि यह कानून शादी जैसी संस्था की नींव को कमजोर बनाता हैं। इस पर जो महिला इससे गुजरती हैं या तो केस दर्ज नहीं करवाती या केस दर्ज के बाद भी इसी मानसिक और शारीरक यातना को झेलती रहती हैं। भारतीय संविधान महिला को मौलिक अधिकार में गरिमामय जीवन का अधिकार तो देता हैं, पर उसे संरक्षण और परिस्थतियों में रक्षा नहीं कर पाता हैं। 

यह भारतीय समाज में प्रचलित और गढ़ी हुई पित्रसत्तामाक सोच को बताता हैं जो महिला पर शादी के बाद पति का "उसकी देह पर अधिकार" के रूप में देखती हैं, जो शादी को यौन-अनुबंध की तरह देखती हैं। केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट को अपने दिए हुए "यौन पहुंच की उचित अपेक्षा" के हलफनामे में रखा , जिसमें कहा गया कि विवाह के भीतर यौन-सम्बद्ध की अपेक्षा स्वाभिक हैं। लेकिन यह तर्क महिला की स्वायत्ता और गरिमा के खिलाफ हैं। 
 

भारतीय कानून क्या कहता हैं ?

भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 63 (पूर्व की IPC धारा 375) बलात्कार की परिभाषा देती हैं, लेकिन अपवाद के रूप में यह कहती हैं कि पत्नी यदि 18वर्ष की आयु से अधिक हैं , तो पति द्वारा उसके साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं माना जाएगा, चाहे पत्नी की सहमति हो या न हो। क्या यह महिला के गरिमामयी जीवन का उलंघन नहीं हैं?
भारतीय कानून पत्नी की इच्छा को शादी के बाद consent in sex जरूरी नहीं समझता, लेकिन क्यों ? यह सवाल का जबाब भारतीय जनमानस और रूढ़िवादी विचारधारा से जुड़ा हुआ हैं, जहां पत्नी को पति की संपत्ति और उस पर हर तरह से अधिकार को अनुमति देता हैं। 

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कब तक रहेंगी यह दोहरी प्रवत्ति ?

भारत में मौलिक अधिकार का में महिला के लिए गरिमामय जीवन का होना भी सिर्फ एक कानूनी लुभावन हैं, जो सिर्फ मानसिक संतुष्टि के लिए ठीक हैं। पर यह सिर्फ मौलिक अधिकार के होने पर ही नहीं अन्तराष्ट्रीय कानून जैसे CEDAW और सबसे जरूरी मानव अधिकार के होने और भारत की उनकी सहमति पर भी प्रश्न लगा देते हैं। 
आज भी ऐसी कई भारतीय महिलाओं हैं, अपने जीवन में घुटती रहती हैं, पर इसके खिलाफ आवाज उठाकर भी उन्हें न्याय नहीं मिलता, क्योंकि भारतीय कानून में उनके लिए कोई प्रावधान नहीं हैं। भारतीय समाज में तो नारी को विवाह जैसी संस्था में झुकने और रजामंदी से रहने को प्रेरित किया जाता हैं, लेकिन वहीं यदि कानून भी ऐसी सोच को मैरिटल रैप को रैप न मानकर उसे शादी की संस्था का आवश्यक हिस्सा समझता हैं तो विवाह जैसी संस्था को मान्यता होना भी एक बहुत बड़ा प्रश्न हैं, क्योंकि यह तो रैपिस्ट को रैप की सहमति का अनुबंध सा प्रतीत होता हैं, जिसमे कानूनी और समाजिक सहमति दोनों शामिल हो।

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