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इस दशहरे पर कैसे हम महिलाओं के साथ हो रही बुराई को खतम कर सकते हैं?

दशहरे का त्योहार बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत है। आज हम बात करेंगे कि कैसे हम दशहरे के इस पवित्र पर्व के उपलक्ष पर बुराई को खत्म कर सकते हैं।

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Rajveer Kaur
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Dussehra

Image Credit: Pinterest

This Dussehra, Let's Pledge to End Violence Against Women: महिलाओं के साथ हो रही बुराई से हम सब वाकिफ है। हर दिन ऐसी खबरें सुनने को मिलती हैं जहां पर महिलाओं के साथ ऐसे जघन्य अपराध होते हैं जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। जब भी अपराध होता है तब हम मोमबत्तियां लेकर सड़कों पर उतर जाते हैं। हम जुर्म को मिटाने के नारे लगाते हैं। सरकार भी तब तक ही सक्रिय रहती है जब तक जुर्म चर्चा में बना रहता है। उसके बाद हम सभी वापस से नॉर्मल हो जाते हैं और किसी अगली घटना का इंतजार करते हैं। ऐसे तो कुछ भी महिलाओं के हित में नहीं होगा। महिलाएं हर दिन अपनी सुरक्षा के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। आज हम बात करेंगे कि कैसे हम दशहरे के इस पवित्र पर्व के उपलक्ष पर बुराई को खत्म कर सकते हैं।

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इस दशहरे पर कैसे हम महिलाओं के साथ हो रही बुराई को खतम कर सकते हैं?

अगर हम दशहरे का सारांश एक लाइन में निकाले तो यह बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत है। अगर हम इस दशहरे पर यह प्रण लें कि हम महिलाओं के साथ हो रही बुराई को खत्म करेंगे, उनके लिए हम एक ऐसा माहौल पैदा करेंगे जहां पर उन्हें बाहर निकलने से पहले यह न सोचना पड़े कि आज उनके साथ कोई घटना तो नहीं होगी या फिर उन्हें पेपर स्प्रे, चाकू या कुछ ऐसे हथियार न लेकर निकालना पड़े जो उनकी जान बचा सकते हैं। हर साल दशहरे के दिन हम रावण, मेघनाथ और कुंभकरण का दहन करते हैं जिसका प्रतीक हम यह मानते हैं कि हम बुराई को खत्म कर रहे हैं लेकिन क्या ऐसे सच में बुराई खत्म हो जाएगी? बुराई खत्म करने के लिए हमें अपने एक्शंस को बदलना होगा। हम सब छोटे-छोटे ऐसे काम कर देते हैं जो किसी को बुरा महसूस करवाते हैं या किसी की जिंदगी को बदल कर रख देते हैं। ऐसे में हमें अपने आप में बदलाव करने के लिए सोचना चाहिए।

हमारी सोच अपनी घर की बहू, बेटी, पत्नी या फिर बहन के लिए अलग होती है लेकिन जब किसी की बहू, बेटी, पत्नी, बहन और माँ की बात आती है तब हम यह सोचते हैं कि हमें इससे कोई लेना-देना नहीं है। यह हमारे घर का मामला नहीं है। हम तब तक नजरअंदाज करते रहते हैं जब तक जुर्म हमारे दरवाजे को खटखटाता नहीं है। अगर हम आज किसी के मामले में नहीं बोलेंगे तो कल हमारा घर भी हो सकता है। कोलकाता रेप और मर्डर केस में हम सब ने देखा कि कैसे एक महिला वर्कप्लेस में भी सेफ नहीं है। रोजाना ऐसी घटनाएं होती हैं जो समाज को शर्मसार करती हैं और पूछने के लिए मजबूर करती हैं कि क्या आज के समय में भी हम महिलाओं को सुरक्षित माहौल प्रदान नहीं कर सकते हैं और इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

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