अक्सर आपने देखा होगा की शादी के बाद पति-पत्नी ज्यादातर साथ में ही सोते हैं। इस बात को जरूरी भी समझा जाता है और भारतीय परिवारों में लड़के को पर्सनल रूम तब ही मिलता है जब उनकी शादी हो जाती है। क्या हो अगर कभी वाइफ-हस्बैंड एक दूसरे के साथ सोना न चाहें ? सवाल आपको थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन जवाब सरल है। आज शादी के बाद भी पर्सनल स्पेस का क्या महत्व है, उसके बारे में जानेंगे।
क्या शादी के बाद पत्नी पति से अलग नहीं सो सकती ?
यह कॉन्सेप्ट और सोच आपको अजीब लग सकती है लेकिन इस बात में कोई बुराई या फिर डोमिनेंस नहीं है। यह अकेला औरतों के लिए नहीं है मर्दों को भी कई बार पर्सनल स्पेस चाहिए होती है। सवाल यह भी उठ सकता है कि पार्टनर से कैसी स्पेस! इस बात को समझना होगा कि अगर दो व्यक्तियों की शादी हो गई है इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि वह अब वो दो इंडिविजुअल नहीं रहे हैं। 'दो जिस्म एक जान' वाली बात सिर्फ फिल्मों में अच्छी लगती है रियल्टी इससे बहुत दूर है।
हम सभी लाइफ के अलग-अलग पड़ाव में अलग-अलग इमोशंस को महसूस करते हैं जिसके दौरान कई बार हमें अकेले रहने की जरूरत महसूस होती है। उसके दौरान चाहे आपका कोई पार्टनर ही क्यों ना हो, आप चाहते हैं कि कुछ समय के लिए आप अकेले रहें या आपसे कोई बात ना करे तब हमें पर्सनल स्पेस की जरूरत पड़ सकती हैं। इसमें कोई बुरा मानने वाली या एगो पर लेने वाली बात नहीं है।
पर्सनल स्पेस का मतलब कुछ 'छुपाना' नही है।
पर्सनल स्पेस की जब बात आती है हम भारतीय काफी कॉन्शियस हो जाते हैं। मां बाप को पर्सनल स्पेस की बात तब समझ लेनी चाहिए जब बच्चा टीनएज में आने लगता है। इसका मतलब यह नहीं है कि वह बिगड़ जाएगा या फिर कुछ गलत काम कर रहा है। प्राइवेसी का मतलब है उसकी भी कुछ निजी ज़रूरतें हैं जिन्हें वह किसी के सामने व्यक्त नहीं कर सकता।
ऐसा पति-पत्नी के रिश्ते में भी होता है। कई बार पार्टनर को भी पर्सनल स्पेस की जरूरत पड़ सकती हैं। आप उसे पॉजिटिवली लें और पत्नी को अलग सोने या रहने दें । कोई व्यक्ति हमारे जितना भी करीब हो, हमें इस बात को समझना चाहिए कि उसकी भी एक निजी लाइफ और ज़रूरतें हो सकती हैं जिसे पूरा करने का उन्हें पूरा अधिकार है।