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Why Always Women: हमेशा तलाक या ब्रेकअप का दोष औरतों को क्यों दिया जाता है?

समाज में तलाक या ब्रेकअप के समय अक्सर औरतों को ही दोषी ठहराया जाता है। यह सदियों से पितृसत्तात्मक समाज में व्याप्त एक गहरी रूढ़िवादी मानसिकता का परिणाम है। इस प्रवृत्ति के पीछे कई सामाजिक, सांस्कृतिक और मानसिक कारण हो सकते हैं।

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Dibya Debasmita Pradhan
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Women always blamed for everything

Image Credit: Pinterest

Why Do Women Bear the Blame in Relationship Failures?: समाज में तलाक़ या ब्रेकअप के समय अक्सर औरतों को ही दोषी ठहराया जाता है। यह सदियों से पितृसत्तात्मक समाज में व्याप्त एक गहरी रूढ़िवादी मानसिकता का परिणाम है। इस प्रवृत्ति के पीछे कई सामाजिक, सांस्कृतिक और मानसिक कारण हो सकते हैं।

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Why Always Women: हमेशा तलाक या ब्रेकअप का दोष औरतों को क्यों दिया जाता है?

हमारा समाज पारंपरिक रूप से पितृसत्तात्मक है, जहाँ पुरुषों को अधिकार और महिलाओं को कर्तव्य निभाने की शिक्षा दी जाती है। विवाह के संबंध में भी यही दृष्टिकोण अपनाया जाता है। जब कोई विवाह टूटता है, तो समाज यह मानने लगता है कि औरत ने अपने कर्तव्यों का सही तरीके से पालन नहीं किया होगा, जिससे यह स्थिति उत्पन्न हुई।

महिलाओं से समाज की अपेक्षाएं हमेशा से ही बहुत उच्च रही हैं। उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे एक अच्छी पत्नी, माँ, बहू और बेटी बनकर रहें। अगर किसी भी भूमिका में वे असफल होती हैं, तो उन्हें दोषी ठहराया जाता है। तलाक या ब्रेकअप के मामले में भी, समाज यह मान लेता है कि महिला ने अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से नहीं निभाया होगा।

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महिलाएँ सामाजिक नियमों और मान्यताओं के तहत जीने के लिए मजबूर होती हैं। उन्हें अपने अधिकारों और इच्छाओं को अक्सर त्यागना पड़ता है ताकि वे समाज की अपेक्षाओं पर खरी उतर सकें। यदि कोई महिला अपने आत्म-सम्मान और व्यक्तिगत खुशियों के लिए तलाक का निर्णय लेती है, तो उसे स्वार्थी और परिवार विरोधी कहा जाता है।

पुरुषों का प्रभुत्व

तलाक या ब्रेकअप के समय, समाज में पुरुषों की भूमिका को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। पुरुषों के गलत व्यवहार, बेवफाई, हिंसा और अन्य कारणों को महत्व नहीं दिया जाता, जबकि महिलाओं की छोटी-छोटी गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है। यह समाज में पुरुषों के प्रभुत्व का परिणाम है।

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महिलाएं अक्सर भावनात्मक रूप से कमजोर मानी जाती हैं और उनके ऊपर दबाव डाला जाता है कि वे परिवार को जोड़कर रखें। जब वे इस दबाव को सहन नहीं कर पातीं और संबंध टूटता है, तो समाज उन्हें ही दोषी मानता है। यह मानसिकता महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालती है।

मीडिया और फिल्मों में भी महिलाओं को ही दोषी ठहराने का चलन देखा गया है। फिल्मों और धारावाहिकों में महिलाओं को अक्सर नेगेटिव भूमिका में दिखाया जाता है, जिससे समाज की धारणा और पुख्ता होती है। इस प्रकार के प्रदर्शन से समाज में महिलाओं के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को बल मिलता है।

बदलती मानसिकता की आवश्यकता

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समाज को इस मानसिकता से बाहर आने की आवश्यकता है। हमें यह समझना होगा कि तलाक या ब्रेकअप के लिए केवल महिलाओं को दोषी ठहराना सही नहीं है। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें दोनों पक्षों की जिम्मेदारी होती है।

तलाक या ब्रेकअप के समय हमेशा महिलाओं को दोषी ठहराना समाज की एक गहरी जड़ें जमाई हुई मानसिकता है। इसे बदलने के लिए हमें अपने दृष्टिकोण को बदलना होगा और दोनों पक्षों की जिम्मेदारियों को समझना होगा। समाज में समानता और न्याय की स्थापना के लिए यह बदलाव आवश्यक है।

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