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Parents कैसे करें टीनेजर बच्चों के साथ बांड स्ट्रांग

माँ-बाप को लगता है बच्चों की सिर्फ़ ज़रूरतों को पूरा करना ही पेरेंटिंग है लेकिन सबसे ज़रूरी है उनके साथ बैठना और समय व्यतीत करें। आप उनके साथ शॉपिंग या खाने पर जाएँ या फिर घर पर ही कुछ प्लान बनाएँ। इससे आपका बॉंड ज़रूर स्ट्रोंग होगा।

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Rajveer Kaur
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Teenagers(TOI)

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माँ-बाप हमेशा बच्चों की भलाई के बारे में सोचते है। लेकिन कई बार वो बच्चों भलाई के नाम पर सीमा को पार कर जाते है जिस कारण वह  बच्चों के लिए टॉक्सिक बन जाते है। ऐसी स्थिति में बच्चों और माँ-बाप में एक फ़ासला आ जाता है और इसके स्वरूप बच्चे माँ-बाप से बातें छुपाने लग जाते है। इस कारण वे मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाते है। चलिए जानते है कि ऐसा क्या करें बच्चे और माँ-बाप में एक अच्छा रिलेशन और बॉंड स्थापित हो जाए।

Parents कैसे करें टीनेजर बच्चों के साथ बांड स्ट्रांग 

  • उनके साथ समय व्यतीत करें:- माँ-बाप को लगता है बच्चों की सिर्फ़ ज़रूरतों को पूरा करना ही पेरेंटिंग है लेकिन सबसे ज़रूरी है उनके साथ बैठना और समय व्यतीत करें। आप उनके साथ शॉपिंग या खाने पर जाएँ या फिर घर पर ही कुछ प्लान बनाएँ। इससे आपका बॉंड ज़रूर स्ट्रोंग होगा।
  • उनको अप्रीसिएशन दीजिए:- यह एक ऐसी अवस्था होती जिसमें  बच्चे ना बहुत बढे होते कि उन्हें सही गलत की समझ हो और ना इतने छोटे कि आपका व्यवहार समझ न सके।  इसलिए आप उनके छोटे-बढे सभी कामों को अप्रीशिएट कीजिए।  इसे उनका हौसला बढ़ेगा और वह और ज्यादा पढाई या अपनी लाइफ के प्रति  प्रोत्साहित होंगे। 
  • दिन के कुछ काम साथ में करे:- आप सारा दिन अपने ही कामों में लगे रहेगा  बच्चों को समय नहीं देंगे इससे उनका ध्यान आपकी तरफ से हटता जाएगा।  यह एक ऐसी उम्र होती है जिसमें बच्चे साहरा ढूंढ़ते है अगर आप नहीं तो और कही।  किसी और से अच्छा आप उनके लिए समय निकले।  दिन में कुछ एक्टिविटीज साथ जैसे पौधों को पानी देना,वाक पर जाना, खाना बनाना, साथ में मूवी देखना। 
  • उनका सपोर्ट सिस्टम बनें:- लाइफ में वे जो भी हासिल करना चाहते हैं उसमें उनका साथ दे।  उनका सपोर्ट सिस्टम बनें।  उनके जो भी सपने है उन्हें पंख दे। अपने सपने उन पर मत थोपिए।  ये उनकी लाइफ उन्हें अपने फैसले खुद लेने दीजिए लेकिन उन्हें गाइड कीजिए पर कंट्रोल नहीं। 
  • उनकी ज़िन्दगी में शामिल हो:- आप उनकी ज़िन्दगी का एक अटूट हिस्सा बनिए।  ऐसा कुछ कीजिए जिससे वह आपके खींचे चले आए न की भागे। इसका मतलब नहीं कि आप उनको डिक्टेट करने लग जाइए , उनकी सुनिए वे क्या कहना चाहते है अगर आपको लगता है यह गलत इसमें उनको गाइड कीजिए न कि उन्हें डांटे। 
  • उनकी तुलना मत करें:- हम हमेशा अपने बच्चों की तुलना दूसरों से करते है लेकिन ऐसा नहीं करें इससे उनका मनोबल कम होता है इसलिए आप उन्हें समझाए हर एक व्यक्ति की एक अलग पहचान होती है। 
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