What Are The Signs Of Suicide In Kids: आज के समय में बच्चों की सबसे बड़ी प्रॉब्लम मेंटल हेल्थ है। मां-बाप बच्चों के साथ समय व्यतीत नहीं करते हैं एवं उनके ऊपर प्रेशर डालते हैं। वह बचों को ऐसा करियर चुनने के लिए कहते हैं जिसमें बच्चे का मन नहीं होता है। उनकी हर क्रिया को लेबल करते हैं। उन्हें दूसरों के साथ कंपेयर करते हैं। इस तरह बच्चे खुद को बुरा समझने लग जाते हैं और जिंदगी की दौड़ में खुद को ही खत्म कर लेते हैं। हर दिन हमें कुछ ऐसी घटना सुनने को मिलती हैं जहां पर बच्चे प्रेशर में आकर अपनी जान खत्म कर लेते हैं। आज हम जानेंगे कि कैसे माता-पिता बच्चे में सुसाइडल थॉट्स को पहचान सकते हैं-
बच्चों में आत्महत्या के विचारों को पहचानें और मदद करें
व्यवहार में बदलाव: अगर बच्चा सुसाइड जैसा एक बड़ा कदम ले रहा है तो उसके व्यवहार में कुछ समय पहले से ही बदलाव देखने को मिल जाते हैं। वह डिप्रेशन या एंजायटी से ग्रस्त होता है। उसका किसी काम में मन नहीं लगता है। वह अपने दोस्तों के साथ बात करना बंद कर देता है। खुद को अकेला रखना शुरू कर देता है और जिंदगी से निराश होता है।
खान-पान पर असर: अगर आपका बच्चा खाना अच्छे से नहीं खा रहा है या फिर उसे भूख बहुत कम लगती है या और साथ ही किसी ईटिंग डिसऑर्डर का शिकार है तब भी इस बात के चांसेस है कि आपके बच्चे की मेंटल हेल्थ ठीक नहीं है या आगे चलकर सुसाइड जैसा कदम भी उठा सकता है। उसके मूड स्विंग्स बहुत ज्यादा होने लग जाएंगे। वह बहुत ज्यादा गुस्से में रहने लग जाएगा और खूंखार बन जाएगा। उसे रिस्क लेने में बिल्कुल भी डर नहीं लगेगा।
रचनात्मक अभिव्यक्ति: जब बच्चा सुसाइड करने की स्टेज पर पहुंच जाता है तब उसकी बातों और एक्शंस में आपको मौत दिखाई देने लग जाएगी। वह ऐसी ड्राइंग या पेंटिंग्स बनाना शुरू कर देगा जिसमें वह मरने की को दिखा सकता है। उसे ऐसा लगना शुरू हो जाएगा कि वह अपने माता-पिता और दोस्तों के ऊपर एक बोझ है और जिंदगी में कुछ भी नहीं कर सकता है।
खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश: वह ऐसी हरकतें करेगा जिसमें खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश होगी या फिर वह अपने आप को जान से मारने की कोशिश करेगा। यह सब चीज एक वार्निंग की तरह होता है। अगर आप तब भी अपने बच्चों को संभाल लेते हैं और उस उसकी मदद करते हैं तो बच्चा इस चक्र से बाहर निकल सकता है।
सुसाइड कभी भी किसी की पहली च्वाइस नहीं होती है। इसमें बच्चों से ज्यादा आसपास के माहौल का ज्यादा दोष होता है जहां पर उसे जज किया जाता है या लेबल लगाए जाते हैं। उसे सुना नहीं जाता है। उसे लगता है कि उसकी इस दुनिया में कोई वैल्यू नहीं है और वह कुछ नहीं कर सकता है। कई बार हम बच्चों के प्रति इतने इनसेंसेटिव हो जाते हैं कि हम यह भूल जाते हैं कि वे क्या सोच रहे हैं या क्या चाहते हैं। इसलिए आप अपने बच्चों को सुनना शुरू करें। उनके साथ समय व्यतीत करें। उनकी हर एक एक्टिविटी पर नजर रखें ।अगर बच्चा आपके साथ बात नहीं कर रहा है या फिर समय पर खाना नहीं खा रहा है और अपने दोस्तों से नहीं मिल रहा है तो जरूर वह किसी न किसी समस्या से जुझ रहा है। ,इसे हल्के में लेने की गलती मत करें नहीं तो आपका बच्चा छोड़कर जा सकता है।