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How Autoimmune Diseases Show Different Symptoms in Women: पुरुषों की तुलना में महिलाएं इन बीमारियों की चपेट में अधिक आती हैं और इनमें लक्षण भी अलग तरह से सामने आ सकते हैं। ऑटोइम्यून बीमारियां तब होती हैं जब शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली यानी Immune system गलती से अपने ही स्वस्थ ऊतकों और अंगों पर हमला करने लगती है। यह प्रणाली आमतौर पर शरीर को बैक्टीरिया, वायरस और दूसरी हानिकारक चीज़ों से बचाती है। लेकिन जब यह गलती से अपने ही शरीर के स्वस्थ हिस्सों को दुश्मन समझ बैठती है, तो इससे कई तरह की गंभीर और लंबी चलने वाली बीमारियाँ हो सकती हैं।
Immune Insights: महिलाओं में ऑटोइम्यून बीमारियां कैसे दिखाती हैं अलग लक्षण
महिलाओं में ऑटोइम्यून
ऑटोइम्यून बीमारियों से पीड़ित लगभग 80% केवल महिलाएं होती हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे हार्मोनल बदलाव, खासकर एस्ट्रोजन का स्तर, महिलाओं में इन रोगों को ट्रिगर कर सकता है। इसके अलावा, महिलाओं की रोगों से लड़ने वाली शक्ति ज़्यादा तेज़ होती है। यह एक तरफ उन्हें संक्रमण से बेहतर बचाव देती है, लेकिन दूसरी तरफ, इससे ऑटोइम्यून बीमारियों का खतरा भी ज़्यादा हो जाता है।
ऑटोइम्यून बीमारियाँ
ऑटोइम्यून बीमारियों में कई तरह की स्थितियाँ शामिल होती हैं, जैसे ल्यूपस (SLE), रूमेटॉइड अर्थराइटिस, थायरॉइड से जुड़ी समस्याएँ (जैसे हाशिमोटो और ग्रेव्स डिजीज), टाइप 1 डायबिटीज, सोरायसिस, मल्टीपल स्क्लेरोसिस और इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (IBD)। इन सभी में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से अपने ही अंगों पर हमला करती है, जिससे वे प्रभावित हो जाते हैं।
महिलाओं के लक्षण अलग कैसे?
महिलाओं में ऑटोइम्यून बीमारियों के लक्षण अक्सर बहुत हल्के और भ्रमित करने वाले होते हैं। थकान, हल्का जोड़ों का दर्द, बालों का झड़ना, त्वचा पर चकत्ते, मासिक धर्म में अनियमितता और मूड स्विंग जैसे लक्षण अक्सर नजरअंदाज किए जाते हैं, लेकिन ये गंभीर बीमारियों के संकेत भी हो सकते हैं। ल्यूपस जैसी बीमारी में महिलाओं को चेहरे पर तितली के आकार का रैश, धूप से एलर्जी, और बार-बार बुखार हो सकता है। रूमेटॉइड अर्थराइटिस में उंगलियों और जोड़ों में सूजन और दर्द होता है। ये लक्षण धीरे-धीरे बढ़ते हैं, और अगर समय पर इलाज न किया जाए तो इसके कारण स्थायी नुकसान भी हो सकता है।
डायग्नोसिस में देरी
क्योंकि ऑटोइम्यून बीमारियों के लक्षण धीरे-धीरे और कई बार सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं जैसे लगते हैं, इसलिए डॉक्टर भी इन्हें पहचानने में समय लगा सकते हैं। महिलाओं की बात को कई बार "स्ट्रेस" या "हार्मोनल बदलाव" कहकर नजरअंदाज कर दिया जाता है। यही कारण है कि इन बीमारियों का सही समय पर पता नहीं चल पाता और इलाज देर से शुरू होता है। समय लगने की वजह से ये बीमारी बड़ा रूप ले लेती है और इलाज में दिक्कतें आती है।
लक्षणों पर नियंत्रण
ऑटोइम्यून बीमारियों का पूरा इलाज तो नहीं होता, लेकिन सही दवाओं और अच्छी जीवनशैली से इनके लक्षणों को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। इसके लिए सूजन कम करने वाली दवाएं, स्टेरॉइड्स, इम्यूनोमॉड्यूलेटर्स के साथ-साथ हेल्दी डाइट, योग और तनाव कम करने की आदतें बहुत फायदेमंद होती हैं।
जागरूकता
महिलाओं को अपने शरीर के संकेतों को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। यदि लंबे समय तक थकान, बाल झड़ना या स्किन प्रॉब्लम हो तो उसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। सही समय पर डॉक्टर से सलाह लें और ज़रूरत हो तो स्पेशलिस्ट से टेस्ट कराएं। ऑटोइम्यून बीमारियों के प्रति जागरूकता, समय पर जांच और उचित इलाज से महिलाएं स्वस्थ, सामान्य और सक्रिय जीवन जी सकती हैं।