Impact of Stress on the Developing Fetus: गर्भावस्था महिलाओं के जीवन का एक बहुत ही अहम और महत्वपूर्ण पल होता है। इस दौरान उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में बहुत सारे बदलाव देखने को मिलते हैं, जो उनके साथ-साथ उनके बच्चे पर भी प्रभाव डालता है। प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं में सबसे बड़ी समस्या तनाव की रहती है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं पर बहुत सारे दबाव होते हैं जैसे कि काम का दबाव, परिवार की चिंता, शिशु की चिंता और साथ ही खुद की चिंता भी रहती है। तो आइये जानते हैं तनाव के कारण गर्भ में पल रहा शिशु कैसे होता है प्रभावित?
तनाव के कारण गर्भ में पल रहे शिशु पर 5 प्रभाव
1. वजन में कमी
जब गर्भवती महिलाएं तनाव में रहती है तो शिशु के जन्म के समय उसके वजन कम होने का खतरा बना रहता है। इससे शरीर में कोर्टिसोल जैसे हार्मोन का लेवल बढ़ जाता है जिसकी वजह से गर्भ में पल रहे शिशु को पोषण नहीं मिल पाता और इसी कारण से उसके विकास में बाधा आती है। जब शिशु का वजन जन्म के समय कम होता है तो बाद में उसे बहुत सारी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
2. समय से पहले डिलीवरी
तनाव के कारण समय से पहले डिलीवरी का प्रमुख कारण हो सकता है। तनाव के कारण शरीर में ऑक्सीटोसिन और कोर्टिसोल जैसे हॉरमोन इंबैलेंस हो जाते हैं जिसकी वजह से यूट्रस मे सिकुड़न शुरू हो जाती है। जिसकी वजह से डिलीवरी समय से पहले हो सकती है। समय से पहले डिलीवरी होने के कारण शिशुओं के कुछ अंग विकसित नहीं होते जैसे कि फेफड़े मस्तिष्क और हृदय। ऐसे बच्चे बहुत ज्यादा नाजुक होते हैं उनका ध्यान रखना अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है।
3. मस्तिष्क के विकास
मां के गर्भ में पल रहे शिशु का मानसिक विकास तनाव के कारण रुक सकता है या फिर प्रभावित हो सकता है। गर्भवती महिलाएं जब तनाव में होती है, तो उसकी वजह से सही पोषण तत्व शिशु तक नहीं पहुंच पाते हैं। साथी तनाव में होने के कारण ऑक्सीजन की कमी भी हो सकती है। इस स्थिति में शिशु का विकास नहीं हो पाता जिसके परिणामस्वरूप याददाश्त और निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है।
4. इम्यून सिस्टम
जब महिलाएं तनाव में रहती है तो उनका इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है, जो शिशु को प्रभावित करता है। अगर मां का इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर रहेगा तो शिशु का भी इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर होना तय रहता है। इससे शिशु को जन्म के बाद संक्रमण, एलर्जी और अन्य बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशीलता हो सकती है। इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर होने के कारण भविष्य में बार-बार बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।
5. हृदय और तंत्रिका तंत्र के विकास
गर्भवती महिला के तनाव में रहने के कारण शिशु के हृदय पर असर पड़ता है। तनाव हार्मोन ऑक्सीटोसिन और कोर्टिसोल इंबैलेंस हो जाता है जिसकी वजह से शिशु के ब्लड सर्कुलेशन और हृदय की धड़कन पर प्रभाव पड़ता है। हृदय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने के कारण जन्म के बाद शिशु को हृदय संबंधित परेशानियां हो सकती हैं।