जानिए आपके Mental Stress का आपके Period Flow से क्या है सीधा कनेक्शन?

स्ट्रेस सिर्फ आपके मूड को नहीं, बल्कि आपके पीरियड्स को प्रभावित करता है? जानिए कैसे मेंटल स्ट्रेस हार्मोन्स और पीरियड फ्लो पर असर डालता है और इसे कैसे संभालें।

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Deepika Aartthiya
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Photograph: (Pinterest via vishakablone)

आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में स्ट्रेस लगभग हर किसी की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है। इसके पीछे वर्क प्रेशर, रिलेशनशिप इश्यूज़, नींद की कमी या लगातार ओवरथिंकिंग जैसे कई कारण हो सकते है। लेकिन क्या आप जानती हैं कि इसका असर सिर्फ आपके मूड या नींद पर नहीं, बल्कि आपके पीरियड्स पर भी पड़ता है? कई महिलाएं नोटिस करती हैं कि स्ट्रेस बढ़ने पर उनके पीरियड्स या तो देर से आते हैं, फ्लो बहुत ज़्यादा या बहुत कम हो जाता है, या फिर अचानक साइकल ही बिगड़ जाती है। दरअसल, ये सब आपके माइंड और हार्मोनल सिस्टम के बीच गहरे कनेक्शन की वजह से होता है। कैसे? चलिए जानते है।

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जानिए आपके Mental Stress का आपके Periods Flow से क्या है सीधा कनेक्शन?

1. स्ट्रेस बदल देता है शरीर का हार्मोनल बैलेंस

जब महिलाएं लंबे समय तक stress में रहती हैं, तो माइंड कॉर्टिसोल नाम का एक स्ट्रेस हार्मोन रिलीज़ करता है। यह वही हार्मोन है जो बॉडी में “फाइट या फ्लाइट” रेस्पॉन्स को एक्टिव करता है। लेकिन अगर ये हार्मोन लगातार हाई बना रहता है, तो इसका सीधा असर हाइपोथैलेमस और पिट्यूटरी ग्लैंड पर पड़ता है। जो कि आपके पीरियड कंट्रोल करने वाले रिप्रोडक्टिव हार्मोन्स एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन को रेगुलेट करते हैं। जब इनका हार्मोन्स का बैलेंस बिगड़ता है, तो पीरियड्स फ्लो और menstrual cycle दोनों में बदलाव नज़र आने लगते हैं।

2. ओव्यूलेशन में देरी और साइकिल का बिगड़ना

ज्यादा कॉर्टिसोल लेवल ओव्यूलेशन को delay कर सकता है, यानी eggs समय पर रिलीज़ नहीं होते है या कभी-कभी रुक भी जाते है। जिसे मेडिकल भाषा में “Stress-Induced Amenorrhea” कहा जाता है। नतीजा ये होता है की पीरियड्स या तो लेट आते हैं, या कई बार पूरी तरह स्किप भी हो जाते हैं। ये बदलाव अनस्टेबल हो सकते हैं, लेकिन लगातार स्ट्रेस रहने पर ये पैटर्न लंबे समय तक जारी रह सकता है।

3. हर बॉडी का रिएक्शन अलग होता है

हर फीमेल बॉडी स्ट्रेस पर अलग तरह से रिएक्ट करती है। किसी को बहुत हल्का फ्लो महसूस होता है, किसी को ज़्यादा और लंबे पीरियड्स। कई बार बॉडी एनर्जी बचाने के लिए ओव्यूलेशन को ही रोक देता है, ताकि बॉडी ‘सेफ मोड’ में जा सके। इसलिए अगर आपका साइकल बार-बार डिस्टर्ब हो रहा है, तो ये आपकी बॉडी का संकेत हो सकता है कि आपको रेस्ट और इमोशनल बैलेंस की ज़रूरत है।

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4. ब्लीडिंग पैटर्न पर असर

लंबे समय तक स्ट्रेस रहने से ना सिर्फ menstrual cycle की टाइमिंग, बल्कि ब्लीडिंग पैटर्न भी बदल सकता है। कुछ महिलाओं में फ्लो बहुत हल्का हो जाता है, तो कुछ में बहुत ज़्यादा। कई बार इससे cramps और थकान भी बढ़ जाती है, क्योंकि बॉडी एनर्जी का बड़ा हिस्सा स्ट्रेस से लड़ने में खर्च हो जाता है। 

5. नींद, डाइट और रेस्ट का अहम रोल

स्ट्रेस केवल हार्मोन्स को नहीं, बल्कि इम्यूनिटी, नींद और डाइजेशन को भी अफेक्ट करता है। पर्याप्त नींद, बैलेंस्ड डाइट खासतौर पर आयरन और मैग्नीशियम वाले फूड्स, रिलैक्सेशन टेक्नीक्स जैसे मेडिटेशन या वॉकिंग की हेल्प से बॉडी को नॉर्मल रिदम में वापस लाया जा सकता है। ये आदतें धीरे-धीरे हार्मोनल हेल्थ को इंप्रूव करती हैं और period cycle को भी नॉर्मल बनाती हैं।

6. बॉडी signs को ना करें नज़रअंदाज़ 

अगर आपके पीरियड्स पहले रेग्युलर थे और अचानक से फ्लो या डेट्स बदलने लगे हैं। लेकिन तुम्हारे वजन, नींद या डाइट में कोई बड़ा बदलाव नहीं है तो ये mental stress का संकेत हो सकता है। बार-बार साइकल बिगड़ना या फ्लो में लगातार अंतर आने को सिर्फ “स्ट्रेस” कहकर ना टालें। ये बॉडी का तरीका है ये बताने का कि उसे आराम और केयर की ज़रूरत है। अपने period cycle और इमोशनल हेल्थ को ध्यान से ऑब्ज़र्व करें। क्योंकि हेल्दी माइंड और बैलेंस्ड हार्मोन्स ही हेल्दी पीरियड्स की सबसे पहली ज़रूरत हैं।

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