पित्तरसत्ता सोच को पीछे छोड़ आगे बढ़ रही है।किसी भी फ़ील्ड की बात की जाए चाहे वे डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट, एस्ट्रोनॉट या फिर पत्रकारी की बात हो लड़कियाँ किसी भी फ़ील्ड में कम नहीं है लेकिन फिर भी क्यों उन्हें बोझ माना जाता है?इतनी तरक़्क़ी के बाद सिर्फ़ लड़की के जेंडर की वजह उसे क्यों बोझ माना जाता है?
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